30.4.19

Hindi Christian Movie | स्वप्न से जागृति | Revealing the Mystery of Entering the Kingdom of Heaven


Hindi Christian Movie | स्वप्न से जागृति | Revealing the Mystery of Entering the Kingdom of Heaven


यू फान भी प्रभु यीशु में विश्वास करने वाले अन्य बहुतेरे लोगों के समान ही हैं—उन्हें लगता है कि प्रभु यीशु को जब सूली पर चढ़ाया गया, तो उन्होंने पहले ही इंसान के पापों को क्षमा कर दिया था। उन्हें लगता है कि अपनी आस्था के कारण उन्होंने धार्मिकता पाई है और यदि वे सर्वस्व त्यागकर प्रभु के लिये कड़ी मेहनत करेंगी, तो प्रभु यीशु के लौटने पर वे निश्चित रूप से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाएंगी।

29.4.19

Hindi Christian Movie | खोलें दिल की ज़ंजीरें | So Happy to Obey God's Arrangements (Hindi Dubbed)


Hindi Christian Movie | खोलें दिल की ज़ंजीरें | So Happy to Obey God's Arrangements (Hindi Dubbed)

चन ज़ी एक बेहद गरीब किसान परिवार में पैदा हुए थे। स्कूल में पढ़ाये गये "ज्ञान आपकी नियति को बदल सकता है" और "आपकी नियति आपके अपने हाथ में है" के चलते, स्कूल में ये उनके आदर्श-वाक्य बन गये। उन्हें यकीन था कि जब तक वे लगातार कड़ी मेहनत करेंगे, वे दूसरे लोगों से एक कदम आगे रहेंगे, योग्यता और शोहरत हासिल करेंगे। विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, चन ज़ी को विदेश व्यापार में एक अच्छे वेतनवाली नौकरी मिल गयी। लेकिन वे अपने मौजूदा हालातों से बिल्कुल भी खुश नहीं थे।

28.4.19

Hindi Christian Movie | इंसान का आचरण | Only the Honest Are Truly Good People (Hindi Dubbed)


Hindi Christian Movie | इंसान का आचरण | Only the Honest Are Truly Good People (Hindi Dubbed)
बचपन से ही चेंग जियांगगुआंग के माता-पिता और अध्यापकों ने उसे सिखाया था "मिल-जुलकर रहना पूँजी है, सहनशीलता एक सदगुण है," "अच्छे दोस्तों के दोषों पर चुप रहने से दोस्ती अच्छी और लम्बी चलती है," "गलत होते देखकर भी ज़बान बंद रखो।" जैसी बातों का पालन करने से लोगों के साथ संबंध मधुर बने रहते हैं। उसने इन बातों को गांठ बांध लिया कि कभी किसी को अपने कामों या बातों से नाराज़ नहीं करना है, और हमेशा लोगों से अपने रिश्ते बनाए रखने का ख़्याल करना है, और अपने आस-पास के लोगों में एक "अच्छे इंसान" की छवि बनाये रखनी है।

26.4.19

Hindi Gospel Movie | मैं एक नेक इंसान हूँ! | How to Be Good People in the Eyes of God


Hindi Gospel Movie | मैं एक नेक इंसान हूँ! | How to Be Good People in the Eyes of God

ईसाई धर्म में आस्था रखने वाली यांग हुईशिन को बचपन से ही एक अच्छा इंसान बनना पसंद था। उसे किसी को नाराज़ करना अच्छा नहीं लगता। वह मानती है कि वह एक अच्छी इंसान है, क्योंकि वह दयालु है और सबके साथ सहमति बनाकर चलती है। लेकिन अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार को स्वीकारने और परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुज़रने के बाद ही, उसमें एक जागृति आती है।उसे अहसास होता है कि वह सचमुच एक अच्छी इंसान नहीं है।

25.4.19

Hindi Christian Video | जाग्रत | The Word of God Leads Me to Walk on the Right Path of Life


Hindi Christian Video | जाग्रत | The Word of God Leads Me to Walk on the Right Path of Life


इनका नाम चेन शी हैं। बचपन से ही अपने प्रशिक्षण और अभिभावकों तथा स्‍कूली शिक्षा के प्रभाव की वजह से, वे हमेशा भीड़ से अलग दिखने और दूसरों से बेहतर होने की कोशिश में रहती थीं। इसलिये वे लगन से अपनी पढ़ाई करतीं और मेहनत करने में कोई कमी न उठा रखतीं। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करने के बाद, परमेश्‍वर के ढेरों वचन पढ़ने पर कुछ सत्‍यों की चेन शी को समझ आई।

24.4.19

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(6)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
     इस युग के दौरान परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य मुख्य रूप से मनुष्य के जीवन के लिए वचनों का प्रावधान करना, मनुष्य की प्रकृति के सार और भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करना था, धार्मिक अवधारणाओं, सामन्ती सोच, पुरानी सोच, साथ ही मनुष्य के ज्ञान और संस्कृति को समाप्त करना था।

23.4.19

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(5)

परमेश्वर के वचनों के उद्धरणों, अंत के दिनों का न्याय, परमेश्वर का वचन,
      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
    क्योंकि मेरा काम विजय का काम है, और तुम लोगों की पुरानी प्रकृति और अवज्ञा की ओर केंद्रित है। आज, यहोवा और यीशु के दया भरे शब्द, न्याय के कड़े शब्दों के सामने काफी नहीं पड़ते हैं। ऐसे कड़े शब्दों के बिना, तुम "विशेषज्ञों" पर विजय प्राप्त करना असंभव हो जायेगा, जो हजारों सालों से अवज्ञाकारी रहे हैं।

21.4.19

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(3)

  परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      आओ सब से पहले "पहाड़ी उपदेश" के प्रत्येक भाग को देखें। यह सब किस से सम्बन्धित हैं? ऐसा निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि ये सभी व्यवस्था के युग की रीति विधियों से अधिक उन्नत, अधिक ठोस, और लोगों के जीवन के अत्यंत निकट हैं। आधुनिक शब्दावलियों में कहा जाए, तो यह लोगों के व्यावहारिक अभ्यास से ज़्यादा सम्बद्ध है।

20.4.19

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(2)

  
परमेश्वर के वचनों के उद्धरणों, बाइबिल अध्ययन, परमेश्वर का उद्धार,

    उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को उपदेशों की एक श्रृंखला कही, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे माँगें, दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करें इत्यादि। जो कार्य उसने किया वह अनुग्रह के युग का था, और उन्होंने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया कैसे अभ्यास करें।

18.4.19

4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(4)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे ज्यादा और क्या, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के इस सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं?

17.4.19

4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(3)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    यदि तुम लोग परमेश्वर को मापने और निरूपित करने के लिए धारणाओं का उपयोग करते हो, मानो कि परमेश्वर मिट्टी की कोई अपरिवर्ती मूर्ति हो, और तुम लोग परमेश्वर को बाइबल के भीतर सीमांकित करते हो, और उसे कार्यों के एक सीमित दायरे में समाविष्ट करते हो, तो इससे यह प्रमाणित होता है कि तुम लोगों ने परमेश्वर को निन्दित किया है।

16.4.19

4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(2)

परमेश्वर के वचनों के उद्धरणों, परमेश्वर का नाम, यीशु के नाम,
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     यदि मनुष्य हमेशा मुझे यीशु मसीह कहकर सम्बोधित करता है, किन्तु यह नहीं जानता है कि मैंने इन अंतिम दिनों के दौरान एक नए युग की शुरूआत कर दी है और एक नया साहसिक कार्य प्रारम्भ कर दिया है, और यदि मनुष्य हमेशा सनकियों की तरह उद्धारकर्त्ता यीशु के आगमन का इन्तज़ार करता रहता है, तो मैं कहूँगा कि ऐसे लोग उसके समान हैं जो मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं।

15.4.19

4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(1)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
समय की प्रत्येक अवधि में, परमेश्वर नया कार्य आरम्भ करेगा, और प्रत्येक अवधि में, मनुष्य के बीच में एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सच्चाईयों में ही बना रहता है कि "यहोवा ही परमेश्वर है" और "यीशु ही मसीहा है," जो ऐसी सच्चाईयां हैं जो केवल एक अकेले युग पर ही लागू होती हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में असमर्थ रहेगा। इसकी परवाह किए बगैर कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है, मनुष्य जरा सा भी सन्देह किए बिना अनुसरण करता है, और वह करीब से अनुसरण करता है।

14.4.19

3. परमेश्वर का नाम बदल सकता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलेगा।(2)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और कभी भी शैतान नहीं बनेगा; शैतान हमेशा शैतान रहेगा, और कभी भी परमेश्वर नहीं बनेगा। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर की चमत्कारिकता, परमेश्वर की धार्मिकता, और परमेश्वर का प्रताप कभी नहीं बदलेंगे। उसका सार और उसका स्वरूप कभी नहीं बदलेगा।

13.4.19

3. परमेश्वर का नाम बदल सकता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलेगा।(1)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता है कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य हमेशा वैसा ही बना रहता है, तो क्या वह अपनी छः-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में सक्षम होगा?

12.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(15)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


उसका आरम्भिक कार्य यहूदिया में, इस्राएल के दायरे में, किया गया; गैर यहूदी देशों में उसने कोई भी युग-प्रारम्भ करने वाला कार्य नहीं किया। उसके काम का अंतिम चरण न केवल गैर यहूदी राष्ट्र के लोगों के बीच किया जा रहा है; इससे अधिक, यह उन श्रापित लोगों के मध्य में किया जा रहा है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे योग्य प्रमाण है; इस प्रकार से, परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सृष्टि और सभी वस्तुओं का परमेश्वर "बन" जाता है; जीवन युक्त सभी के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।

11.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(14)

 परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
राज्य के युग के दौरान, देहधारी परमेश्वर ने उन सभी लोगों को जीतने के लिए वचन बोले जिन्होंने उस पर विश्वास किया। यह "वचन का देह में प्रकट होना" है; परमेश्वर इस कार्य को करने के लिए अंत के दिनों में आया है, जिसका अर्थ है कि वह वचन का देह में प्रकट होना के वास्तविक महत्व को कार्यान्वित करने के लिए आया। वह केवल वचन बोलता है, और तथ्यों का आगमन शायद ही कभी होता है। वचन का देह में प्रकट होने का यही मूल सार है, और जब देहधारी परमेश्वर अपने वचनों को बोलता है, तो यही वचन का देह में प्रकट होना है, और वचन का देह में आना है।

10.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(13)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     इस समय जब परमेश्वर देहधारी हुआ, तो उसका कार्य, प्राथमिक रूप में ताड़ना और न्याय के द्वारा, अपने स्वभाव को व्यक्त करना है। इसे नींव के रूप में उपयोग करके वह मनुष्य तक अधिक सत्य को पहुँचाता है, अभ्यास करने के और अधिक मार्ग दिखाता है, और इस प्रकार मनुष्य को जातने और मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से बचाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त करता है। राज्य के युग में परमेश्वर के पीछे यही निहित है।

9.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(12)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का ताड़ना और न्याय का एक स्वभाव है,जो वह सब कुछ प्रकट करता है जो अधर्मी है, सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय करता है, और उन लोगों को पूर्ण करता है, जो वास्तव में उससे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का एक स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहलेही आ चुके हैं।

8.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(11)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा। एक समय मुझे यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीह भी कहा जाता था, और लोगों ने एक बार मुझे उद्धारकर्त्ता यीशु कहा था क्योंकि वे मुझ से प्रेम करते थे और मेरा आदर करते थे।

7.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(10)

परमेश्वर के वचनों के उद्धरणों, परमेश्वर का नाम, बाइबिल की भविष्यवाणी,

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा।" (यशायाह 62:2)।
"जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा।" (प्रकाशितवाक्य 3:12)।

6.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(9)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के लिए आया। उसने मनुष्य के प्रति दया और करुणा दिखायी। मनुष्य ने अनुग्रह के युग में जिस यीशु को देखा वह करुणा से भरा हुआ और हमेशा ही प्रेममय था, क्योंकि वह मनुष्य को पाप से मुक्त कराने के लिए आया था।

5.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(8)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    अनुग्रह के युग के कार्य में, यीशु परमेश्वर था जिसने मनुष्य को बचाया। उसका स्वरूप अनुग्रह, प्रेम, करुणा, सहनशीलता, धैर्य, विनम्रता, देखभाल और सहिष्णुता, और उसने जो इतना अधिक कार्य किया वह मनुष्य का छुटकारा था। और जहाँ तक उसका स्वभाव है, वह करुणा और प्रेम का था, और क्योंकि वह करुणामय और प्रेममय था, इसलिए उसे मनुष्य के लिए सलीब पर ठोंक दिया जाना था, ताकि यह दिखाया जाए कि परमेश्वर मनुष्य से उसी प्रकार प्रेम करता था जैसे वह स्वयं से करता था, इस हद तक कि उसने स्वयं को अपनी सम्पूर्णता में बलिदान कर दिया।

4.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(7)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    जब यीशु आया, तो उसने भी परमेश्वर के कार्य का एक भाग पूरा किया, और कुछ वचनों को कहा—किन्तु वह कौन सा प्रमुख कार्य था जो उसने सम्पन्न किया? उसने मुख्यरूप से जो संपन्न किया, वह था सलीब पर चढ़ने का कार्य। क्रूस पर चढ़ने का कार्य पूरा करने और समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए वह पापमय शरीर की समानता बन गया, और यह समस्त मानवजाति के पापों के वास्ते था कि उसने पापबलि के रूप में सेवा की। यही वह मुख्य कार्य है जो उसने सम्पन्न किया।

3.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(6)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     "यीशु" इमैनुअल है, और इसका मतलब है वह पाप बलि जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा देता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबन्धन योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है।

2.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(5)

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, 'हे यूसुफ! दाऊद की संतान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा'" (मत्ती 1:20-21)।

1.4.19

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?(4)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     इस्राएल के सभी लोगों ने यहोवा को अपना प्रभु कहा। उस समय, उन्होंने उसे अपने परिवार का मुखिया माना, और पूरा इस्राएल एक बड़ा परिवार बन गया जिसमें हर कोई अपने प्रभु यहोवा की उपासना करता था। यहोवा का आत्मा प्रायः उन पर प्रकट होता था, और वह उनसे बोलता था अपनी वाणी कहता था, और उनके जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए बादल और ध्वनि के एक स्तंभ का उपयोग करता था।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...