परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आओ सब से पहले "पहाड़ी उपदेश" के प्रत्येक भाग को देखें। यह सब किस से सम्बन्धित हैं? ऐसा निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि ये सभी व्यवस्था के युग की रीति विधियों से अधिक उन्नत, अधिक ठोस, और लोगों के जीवन के अत्यंत निकट हैं। आधुनिक शब्दावलियों में कहा जाए, तो यह लोगों के व्यावहारिक अभ्यास से ज़्यादा सम्बद्ध है।
आओ सब से पहले "पहाड़ी उपदेश" के प्रत्येक भाग को देखें। यह सब किस से सम्बन्धित हैं? ऐसा निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि ये सभी व्यवस्था के युग की रीति विधियों से अधिक उन्नत, अधिक ठोस, और लोगों के जीवन के अत्यंत निकट हैं। आधुनिक शब्दावलियों में कहा जाए, तो यह लोगों के व्यावहारिक अभ्यास से ज़्यादा सम्बद्ध है।
आओ हम निम्नलिखित के विशिष्ट सन्दर्भ को पढ़ें: तुम्हें धन्य वचनों को किस प्रकार समझना चाहिए? तुन्हें व्यवस्था के बारे में क्या जानना चाहिए? क्रोध को किस प्रकार परिभाषित करना चाहिए? व्याभिचारियों से कैसे निपटना चाहिए? तलाक के विषय में क्या कहा गया है, और उसके विषय में किस प्रकार के नियम हैं, और किसे तलाक दिया जा सकता है और किसे तलाक नहीं दिया जा सकता है? मन्नतों, आँख के बदले आँख, अपने शत्रुओं से प्रेम करो, देने के लिए निर्देश, और इत्यादि के विषय में क्या कहा जा सकता है। यह सब कुछ मानव जाति के द्वारा परमेश्वर पर विश्वास करने और परमेश्वर का अनुसरण करने के अभ्यास के प्रत्येक पहलू से सम्बन्धित है। इनमें से कुछ अभ्यास आज भी लागू हैं, परन्तु वे लोगों की वर्तमान जरूरतों के अपेक्षा मूल सिद्धांतों से ज़्यादा जुड़ी हुई हैं। वे बिल्कुल प्रारम्भिक सच्चाईयाँ हैं जिन का सामना लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हुए करते हैं। उस समय से प्रभु यीशु ने काम करना प्रारम्भ कर दिया था, वह पहले से ही मनुष्यों के जीवन स्वभाव पर काम शुरू करनेवाला था, परन्तु वह व्यवस्था की नींव पर आधारित था। क्या इन विषयों के ऊपर आधारित नियमों और कथनों का इस सच के साथ कुछ लेना देना था? हाँ, वास्तव में था? पिछली सभी रीति विधियाँ, सिद्धांत, और अनुग्रह के युग के सन्देश परमेश्वर के स्वभाव और जो उसके पास है तथा जो वह है उस से, और हाँ सत्य से भी सम्बन्धित थे। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर ने क्या प्रकट किया, किस रीति से प्रकट किया, या किस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया, क्योंकि उसकी नींव, उसका उद्गम, और उसका प्रारम्भिक बिन्दु सभी उसके स्वभाव के सिद्धांतों और जो उसके पास है तथा जो वह है उस पर आधारित हैं। इसमें कोई त्रुटि नहीं है। इस प्रकार यद्यपि जिन चीज़ों को उसने कहा था अब थोड़ी हल्की दिखाई देती हैं, फिर भी तुम नहीं कह सकते कि वे सत्य नहीं हैं, क्योंकि वे परमेश्वर की इच्छा को सन्तुष्ट करने और उन के जीवन स्वभाव में एक परिवर्तन लाने के लिए ऐसी चीज़ें थीं जो अनुग्रह के युग में लोगों के लिए अतिमहत्वपूर्ण था। क्या तुम ऐसा कह सकते हो कि पहाड़ी उपदेश की कोई भी बात सत्य के समानान्तर नहीं है? तुम नहीं कह सकते हो! इन में से प्रत्येक एक सच्चाई है क्योंकि वे सभी मानव जाति से परमेश्वर की अपेक्षाएँ हैं; वे सभी परमेश्वर के द्वारा दिए गए सिद्धांत और अवसर हैं कि एक व्यक्ति को किस प्रकार व्यवहार करना है, और वे परमेश्वर के स्वभाव को दर्शाते हैं। फिर भी, उस समय उनके जीवन की बढ़ौतरी के स्तर के आधार पर, वे केवल इन चीज़ों को ही स्वीकार करने और समझने के काबिल थे। क्योंकि अभी तक मानव जाति के पापों का समाधान नहीं किया गया था, प्रभु यीशु केवल इस प्रकार के दायरे के भीतर इन वचनों को जारी कर सकता था, और वह केवल ऐसी साधारण शिक्षाओं का उपयोग कर सकता थाजिस सेलोगों को उस समय के बारे में बताए कि उन्हें किस प्रकार कार्य करना चाहिए, उन्हें क्या करना चाहिए, उन्हें किन सिद्धांतों और दायरे के भीतर चीज़ों को करना चाहिए, और उन्हें किस प्रकार परमेश्वर पर विश्वास करना है और उसकी अपेक्षाओं में खरा उतरना है। इन सब को उस समय मानव जाति की स्थिति के आधार पर निर्धारित किया गया था। व्यवस्था के अधीन जीवन जीनेवाले लोगों के लिए इन शिक्षाओं को ग्रहण करना आसान नहीं था, इस प्रकार जो प्रभु यीशु ने शिक्षा दी थी उसे इसी क्षेत्र के भीतर बने रहना था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से
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