उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को उपदेशों की एक श्रृंखला कही, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे माँगें, दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करें इत्यादि। जो कार्य उसने किया वह अनुग्रह के युग का था, और उन्होंने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया कैसे अभ्यास करें। उसने केवल अनुग्रह के युग का ही कार्य किया और अंत के दिनों का कोई कार्य नहीं किया। … प्रत्येक युग में परमेश्वर के कार्य की स्पष्ट सीमाएँ हैं; वह केवल वर्तमान युग का कार्य करता है और वह कभी भी कार्य का आगामी चरण अग्रिम में नहीं करता है। केवल इस तरह से उसका प्रत्येक युग का प्रतिनिधि कार्य सामने लाया जा सकता है। यीशु ने अंत के दिनों के केवल चिह्नों के बारे में बात की, इस बारे में बात की कि किस प्रकार से धैर्यवान बनें और कैसे बचाए जाएँ, कैसे पश्चाताप करें और स्वीकार करें, और साथ ही सलीब को कैसे सहें, और साथ ही पीड़ाओं को कैसे सहन करें; उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि अंत के दिनों में मनुष्य को किस में प्रवेश करना चाहिए या परमेश्वर की इच्छा को किस प्रकार से संतुष्ट करें।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?" से
स्रोत :सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया–अंत के दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ
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