संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1पतरस 4:17)।
"फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उसको, जो उस पर बैठा हुआ है, देखा; उसके सामने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उनके लिये जगह न मिली। फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के सामने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गईं; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात् जीवन की पुस्तक; और जैसा उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, वैसे ही उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया। समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उसमें थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उनमें थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामों के अनुसार उनका न्याय किया गया। मृत्यु और अधोलोक आग की झील में डाले गए। यह आग की झील दूसरी मृत्यु है; और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया।" (प्रकाशितवाक्य 20:11-15)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पहले कहा गया न्याय वचनों में "न्याय" परमेश्वर के घर से आरम्भ होगा उस न्याय को संदर्भित करता है जो परमेश्वर आज उन लोगों पर पारित करता है जो अंत के दिनों में उसके सिंहासन के सामने आते हैं। शायद ऐसे लोग हैं जो ऐसी अलौकिक कल्पनाओं पर विश्वास करते हैं जैसे कि, जब अंतिम दिन आ चुके होंगे, तो परमेश्वर स्वर्ग में ऐसी बड़ी मेज़ स्थापित करेगा, जिस पर सफेद मेजपोश बिछा होगा, और फिर परमेश्वर एक बड़े सिंहासन पर बैठेगा और सभी मनुष्य ज़मीन पर घुटने टेकेंगे। वह प्रत्येक मनुष्य के पापों को प्रकट करेगा और फलस्वरूप निर्धारित करेगा कि उन्हें स्वर्ग में आरोहण करना है या या आग और गंधक की झील में डाला जाना है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य किस प्रकार की कल्पना करता है, परमेश्वर के कार्य का सार नहीं बदला जा सकता है। मनुष्य की कल्पनाएँ मनुष्य के विचारों की रचना से अधिक कुछ नहीं हैं और मनुष्य की देखी और सुनी हुई बातें जुड़ कर और एकत्रित हो कर उसके दिमाग से निकलती हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि, छवियों की कितनी ही उत्कृष्ट कल्पना की जाए, वे तब भी एक आरेख से अधिक कुछ नहीं हैं और परमेश्वर के कार्य की योजना की विकल्प नहीं हैं। आख़िरकार, मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं, तो वह कैसे परमेश्वर के विचारों की थाह पा सकते हैं? मनुष्य परमेश्वर के न्याय के कार्य को अत्यधिक विलक्षण होने की कल्पना करता है। वह विश्वास करता है कि चूँकि परमेश्वर स्वयं ही न्याय का कार्य कर रहा है, तो यह अवश्य ही बहुत ज़बर्दस्त पैमाने का और नश्वरों के लिए समझ से बाहर होना चाहिए, इसे स्वर्ग भर में गूँजना और पृथ्वी को हिलाना अवश्य चाहिए; अन्यथा यह परमेश्वर द्वारा न्याय का कार्य कैसे हो सकता है? वह विश्वास करता है, कि क्योंकि यह न्याय का कार्य है, तो जब परमेश्वर कार्य करता है तो वह विशेष रूप से प्रभाव डालने वाला और प्रतापी अवश्य होना चाहिए, और जिनका न्याय किया जा रहा है उन्हें अवश्य आँसू बहाते हुए गिड़गिड़ाना और घुटनों पर टिक कर दया की भीख माँगना चाहिए। इस तरह का दृश्य एक भव्य नज़ारा और गहराई तक उत्साहवर्धक अवश्य होना चाहिए। … हर कोई परमेश्वर के न्याय के कार्य के अलौकिक रूप से अद्भुत होने की कल्पना करता है। हालाँकि, क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच न्याय के कार्य को काफी समय पहले आरम्भ किया और यह सब तब किया जबकि तुम शांतिपूर्ण विस्मृति में आश्रय लिए हुए हो? यह कि, जिस समय तुम सोचते हो कि परमेश्वर के न्याय का कार्य अधिकृत तौर पर आरम्भ हो रहा है, तब तक तो परमेश्वर के लिए स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बनाने का समय हो जाता है। उस समय, शायद तुमने केवल जीवन के अर्थ को ही समझा होगा, परन्तु परमेश्वर के न्याय का निष्ठुर कार्य तुम्हें, तब भी गहरी नींद, नरक में ले जाएगा। केवल तभी तुम अचानक महसूस करोगे कि परमेश्वर के न्याय का कार्य पहले से ही सम्पन्न हो चुका है।
… अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर अकेला व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है।यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ, III. अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य से सम्बंधित सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए
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