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5.2.19

1. अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने मानव जाति को छुटकारा दिलाया था, तो क्यों आखिरी दिनों में उसे न्याय के अपने कार्य को करने की अब भी आवश्यकता है?(4)

     परमेश्वर के प्रासंगिक वचन: 

     यद्यपि मनुष्य को छुटकारा दिया गया है और उसके पापों को क्षमा किया गया है, फिर भी इसे केवल इतना ही माना जाता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता है और मनुष्य के अपराधों के अनुसार मनुष्य से व्यवहार नहीं करता है। हालाँकि, जब मनुष्य देह में रहता है और उसे पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को अंतहीन रूप से प्रकट करते हुए, केवल पाप करता रह सकता है।

27.12.18

9. न्याय के कार्य को करने के लिए देह-धारण किया हुआ परमेश्वर किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?(9)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


       परमेश्वर देह में मुख्यतः इसलिए आता है कि मनुष्य परमेश्वर के असली कार्यों को देख सके, निराकार आत्मा को देह में अहसास कर सके, और वह मनुष्य के द्वारा स्पर्श किया और देखा जा सके। इस तरह से, जिन्हें वह पूर्ण बनाता है वह ही उसे जी पाएँगे, उसके द्वारा लाभ हासिल कर पाएँगे, और वह उसके हृदय के अनुसार हो पाएँगे।

24.12.18

9. न्याय के कार्य को करने के लिए देह-धारण किया हुआ परमेश्वर किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?(6)

       परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


      जब मेरे कथनों को स्वीकार करने के बाद सभी लोगों को मेरे बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त होता है, तो यह वह समय होता है जब मेरे लोग मुझे जीते हैं, यही वह समय होता है जब देह में मेरा कार्य पूरा हो जाता है, और यही वह समय होता है जब मेरी दिव्यता पूरी तरह से देह में जीवन व्यतीत कर लेती है।

22.12.18

9. न्याय के कार्य को करने के लिए देह-धारण किया हुआ परमेश्वर किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?(4)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


    क्योंकि वे सभी जो देह में जीवन बिताते हैं, उन्हें अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए अनुसरण हेतु लक्ष्यों की आवश्यकता होती है, और परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वास्तविक कार्यों एवं वास्तविक चेहरे को को देखने की आवश्यकता होती है। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी शरीर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है, और दोनों को सिर्फ साधारण एवं वास्तविक देह के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

21.12.18

9. न्याय के कार्य को करने के लिए देह-धारण किया हुआ परमेश्वर किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?(3)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन: 

     राज्य के निर्माण में मैं प्रत्यक्ष रूप से अपनी दिव्यता में कार्य करता हूँ, और मेरे वचनों के ज्ञान के आधार पर सभी लोगों को वह जानने की अनुमति देता हूँ जो मेरे पास है और जो मैं हूँ, अंततः उन्हें मेरे बारे में जो कि देह में हूँ ज्ञान प्राप्त करने की अनुमति देता हूँ।

10.12.18

8. यह कैसे समझें कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है?(6)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    महत्वपूर्ण यह है कि क्या तुम इस सामान्य मानवता से पता लगाने में सक्षम हो कि वचन देह बन गया है और सत्य का आत्मा देह में प्रत्यक्ष हुआ है-कि समस्त सत्य, जीवन और मार्ग देह में आ गया है, और पवित्रात्मा वास्तव में पृथ्वी पर और देह में आ गया है।

2.12.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(13)

 (परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

      देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं

     परमेश्वर न केवल एक आत्मा है बल्कि वह देहधारण भी कर सकता है; इसके अलावा, वह महिमा का एक शरीर है। यीशु को यद्यपि तुम लोगों ने नहीं देखा है उसकी गवाही इस्राएलियों के द्वारा, अर्थात्, उस समय के यहूदियों द्वारा दी गई थी। पहले वह एक देह था, परन्तु उसे सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद, वह महिमावान शरीर बन गया।

29.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(10)

     (परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

      देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं

परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण का एक वास्तविक महत्व है। जब यीशु का आगमन हुआ, वह पुरुष था, और इस बार वह स्त्री है। इससे, तुम देख सकते हो कि परमेश्वर ने अपने कार्य के लिए पुरुष और स्त्री दोनों का सृजन किया और वह लिंग के बारे में कोई भी भेदभाव नहीं करता है।

28.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(9)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     चाहे इस चरण में देहधारी परमेश्वर कठिनाईयों को सह रहा हो या अपनी सेवकाई को कर रहा हो, वह इसे केवल देहधारण के अर्थ को पूरा करने के लिए करता है, क्योंकि यह परमेश्वर का अंतिम देहधारण है। परमेश्वर केवल दो बार देहधारण कर सकता है।

27.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(8)

 परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      परमेश्वर न केवल पवित्रात्मा, वह आत्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा, सर्व-व्यापी पवित्रात्मा है, बल्कि एक व्यक्ति, एक साधारण व्यक्ति, अपवादात्मक रूप से एक सामान्य व्यक्ति भी है। वह न सिर्फ़ नर, बल्कि नारी भी है। वे इस बात में एक समान हैं कि वे दोनों ही मानवों से जन्मे हैं, और इस बात पर असमान हैं कि एक का पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण किया गया है और दूसरा, मानव से जन्मा है, परन्तु प्रत्यक्ष रूप से पवित्रात्मा से ही उत्पन्न है।

26.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(7)

  परमेश्वर के प्रासंगिक वचन: 

      परमेश्वर पृथ्वी पर मुख्य रूप से "वचन देहधारी हुआ" के सत्य को पूर्ण करने आया है, कहने का अर्थ है कि वह आया है ताकि उसके वचन देह से निर्गत हो जाएँ (पुराने नियम में मूसा के समय के जैसे नहीं, जब परमेश्वर सीधे स्वर्ग से बातचीत करता था)। इसके बाद, उसका प्रत्येक वचन सहस्राब्दि राज्य के युग में पूर्ण होगा, वे मनुष्यों की आँखों के सामने दिखाई देने वाले तथ्य बन जाएँगे, और लोग स्वयं की आखों से बिना किसी भेद के उन्हें देखेंगे।

20.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

       देह में प्रगट परमेश्वर के कार्य को देह में अवश्य किया जाना चाहिए। यदि इसे सीधे तौर पर आत्मा के द्वारा किया जाता है तो उसके कोई प्रभाव नहीं होंगे। भले ही इसे आत्मा के द्वारा किया गया होता, फिर भी वह कार्य किसी बड़े महत्व का नहीं होता, और अन्ततः रज़ामन्द करनेवाला (मनाने वाला) नहीं होता। सभी जीवधारी जानना चाहते हैं कि सृष्टिकर्ता के कार्य का महत्व है या नहीं, और यह क्या दर्शाता है, और यह किस के लिए है, और परमेश्वर का कार्य अधिकार एवं बुद्धि से भरा हुआ है या नहीं, और यह अत्यंत मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण है या नहीं।

15.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(3)
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

         क्योंकि वे सभी जो देह में जीवन बिताते हैं, उन्हें अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए अनुसरण हेतु लक्ष्यों की आवश्यकता होती है, और परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वास्तविक कार्यों एवं वास्तविक चेहरे को को देखने की आवश्यकता होती है। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी शरीर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है, और दोनों को सिर्फ साधारण एवं वास्तविक देह के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। इसी लिए देहधारण ज़रूरी है, और इसी लिए समस्त भ्रष्ट मानवजाति को इसकी आवश्यकता होती है।

14.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(2)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

मनुष्य परमेश्वर में अपने निश्चिन्त विश्वास के द्वारा परेशान नहीं होता है, और जैसा उसे भाता है परमेश्वर में विश्वास रखता है। यह मनुष्य का एक "अधिकार एवं आज़ादी" है, जिसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, क्योंकि मनुष्य अपने स्वयं के परमेश्वर में विश्वास करता है तथा किसी और के परमेश्वर पर नहीं; यह उसकी अपनी निजी सम्पत्ति है, और लगभग हर कोई इस तरह की निजी सम्पत्ति रखता है। मनुष्य इस सम्पत्ति को एक बहुमूल्य ख़ज़ाने के रूप में मानता है, किन्तु परमेश्वर के लिए इससे अधिक निम्न या निकम्मी चीज़ और कोई नहीं है, क्योंकि मनुष्य की इस निजी सम्पत्ति की तुलना में परमेश्वर के विरोध का इससे और अधिक स्पष्ट संकेत नहीं है।

13.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(1)
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)
भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है
परमेश्वर ने देहधारण किया क्योंकि शैतान का आत्मा, या कोई अभौतिक चीज़ उसके कार्य का विषय नहीं है, परन्तु मनुष्य है, जो शरीर से बना है और जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है। निश्चित रूप से चूँकि मनुष्य की देह को भ्रष्ट किया गया है इसलिए परमेश्वर ने हाड़-मांस के मनुष्य को अपने कार्य का विषय बनाया है; इसके अतिरिक्त, क्योंकि मनुष्य भ्रष्टता का विषय है, उसने मनुष्य को अपने उद्धार के कार्य के समस्त चरणों के दौरान अपने कार्य का एकमात्र विषय बनाया है। मनुष्य एक नश्वर प्राणी है, और वह हाड़-मांस एवं लहू से बना हुआ है, और एकमात्र परमेश्वर ही है जो मनुष्य को बचा सकता है।

9.11.18

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?(6)

        परमेश्वर के प्रासंगिक वचन


         यद्यपि देहधारी परमेश्वर एक सामान्य मानवीय मन रखता है, किन्तु उसका कार्य मानव विचार के द्वारा अपमिश्रित नहीं होता है; वह इस पूर्वशर्त के अधीन सामान्य मन के साथ मानवता में कार्य को अपने हाथ में लेता है, कि वह मानवता को मन के साथ धारण करता है, न कि सामान्य मानवीय विचारों को प्रयोग में लाने के द्वारा।

8.11.18

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?

     

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?(5)

        परमेश्वर के प्रासंगिक वचन

        जो कोई ईश्वरत्व में कार्य करता है वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि जो मानवता में कार्य करते हैं वे परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। अर्थात्, देहधारी परमेश्वर उन लोगों से मौलिक रूप से भिन्न है जो परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए हैं।

30.10.18

4. अंतिम दिनों में अपने न्याय के कार्य को करने के लिए परमेश्वर मनुष्य का उपयोग क्यों नहीं करता, इसके बजाय उसे देह-धारण कर, स्वयं इसे क्यों करना पड़ता है?

4. अंतिम दिनों में अपने न्याय के कार्य को करने के लिए परमेश्वर मनुष्य का उपयोग क्यों नहीं करता, इसके बजाय उसे देह-धारण कर, स्वयं इसे क्यों करना पड़ता है?(4)


        परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


      परमेश्वर के कार्य के इन दो चरणों को परमेश्वर के द्वारा उसकी देहधारी पहचान में सम्पन्न किया गया है क्योंकि वे समूचे प्रबंधकीय कार्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लगभग ऐसा कहा जा सकता है कि, परमेश्वर के दो देहधारण के कार्य के बिना, समूचा प्रबंधकीय कार्य थम गया होता, और मानवजाति को बचाने का कार्य और कुछ नहीं बल्कि खोखली बातें होतीं।

28.10.18

4. अंतिम दिनों में अपने न्याय के कार्य को करने के लिए परमेश्वर मनुष्य का उपयोग क्यों नहीं करता, इसके बजाय उसे देह-धारण कर, स्वयं इसे क्यों करना पड़ता है?

     परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यह बिलकुल इसलिए है क्योंकि शैतान ने मनुष्य के शरीर को भ्रष्ट कर दिया है, और मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे परमेश्वर बचाने का इरादा करता है, यह कि परमेश्वर को शैतान के साथ युद्ध करने के लिए और व्यक्तिगत तौर पर मनुष्य की चरवाही करने के लिए देह का रूप लेना ही होगा। केवल यह ही उसके कार्य के लिए फायदेमंद है। शैतान को हराने के लिए परमेश्वर के दो देहधारण अस्तित्व में आए हैं, और साथ ही मनुष्य को बेहतर ढंग से बचाने के लिए अस्तित्व आए हैं।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...