20.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

       देह में प्रगट परमेश्वर के कार्य को देह में अवश्य किया जाना चाहिए। यदि इसे सीधे तौर पर आत्मा के द्वारा किया जाता है तो उसके कोई प्रभाव नहीं होंगे। भले ही इसे आत्मा के द्वारा किया गया होता, फिर भी वह कार्य किसी बड़े महत्व का नहीं होता, और अन्ततः रज़ामन्द करनेवाला (मनाने वाला) नहीं होता। सभी जीवधारी जानना चाहते हैं कि सृष्टिकर्ता के कार्य का महत्व है या नहीं, और यह क्या दर्शाता है, और यह किस के लिए है, और परमेश्वर का कार्य अधिकार एवं बुद्धि से भरा हुआ है या नहीं, और यह अत्यंत मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण है या नहीं। वह कार्य जिसे वह करता है वह सम्पूर्ण मानवजाति के उद्धार के लिए है, शैतान को हराने के लिए है, और सभी चीज़ों के मध्य स्वयं की गवाही देने के लिए है। उसी रूप में, वह कार्य जिसे वह करता है वह अवश्य ही बड़े महत्व का होगा। मनुष्य की देह को शैतान के द्वारा भष्ट किया गया है, और बिलकुल अन्धा कर दिया गया है, और गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया गया है। परमेश्वर किस लिए व्यक्तिगत रूप से देह में कार्य करता है उसका अत्यंत मौलिक कारण है क्योंकि उसके उद्धार का विषय है मनुष्य, जो देह से है, और क्योंकि शैतान भी परमेश्वर के कार्य को बिगाड़ने के लिए मनुष्य की देह का उपयोग करता है। शैतान के साथ युद्ध वास्तव में मनुष्य पर विजय पाने का कार्य है, और ठीक उसी समय, मनुष्य भी परमेश्वर के उद्धार का विषय है। इस रीति से, देहधारी परमेश्वर का कार्य परम आवश्यक है। शैतान ने मनुष्य की देह को भ्रष्ट कर दिया है, और मनुष्य शैतान का मूर्त रूप बन गया है, और ऐसा विषय बन गया है जिसे परमेश्वर के द्वारा हराया जाना है। इस रीति से, शैतान से युद्ध करने और मनुष्य को बचाने का कार्य पृथ्वी पर घटित होता है, और शैतान से युद्ध करने के लिए परमेश्वर को अवश्य मनुष्य बनना होगा। यह अत्यंत व्यावहारिकता का कार्य है। जब परमेश्वर देह में कार्य कर रहा है, तो वह वास्तव में देह में शैतान से युद्ध कर रहा है। जब वह देह में कार्य करता है, तो वह आत्मिक आयाम में अपना कार्य कर रहा है, और आत्मिक आयाम में अपने समस्त कार्य को पृथ्वी पर वास्तविक करता है। वह प्राणी जिस पर विजय पाया जाता है वह मनुष्य है, जो उसके प्रति अनाज्ञाकारी है, वह प्राणी जिसे पराजित किया गया है वह शैतान का मूर्त रूप है (निश्चित रूप से, यह भी मनुष्य ही है), जो परमेश्वर से शत्रुता में है, और वह प्राणी है जिसे अन्ततः बचाया जाता है वह भी मनुष्य ही है। इस रीति से, यह परमेश्वर के लिए और भी अधिक ज़रूरी हो जाता है कि ऐसा मनुष्य बने जिसके पास एक जीवधारी का बाहरी आवरण हो, ताकि वह शैतान के साथ वास्तविक युद्ध करने में सक्षम हो, एवं मनुष्य पर विजय पाए, जो उसके प्रति अनाज्ञाकारी है और उसके समान ही बाहरी आवरण धारण किए हुए है, जो उसके समान ही बाहरी आवरण का हो और जिसे शैतान के द्वारा नुकसान पहुंचाया गया हो। उसका शत्रु मनुष्य है, उसकी विजय का विषय मनुष्य है, और उसके उद्धार का विषय मनुष्य है, जिसे उसके द्वारा सृजा गया था। अतः उसे अवश्य मनुष्य बनना होगा, और इस रीति से, उसका कार्य और अधिक आसान हो जाता है। वह शैतान को हराने और मनुष्य को जीतने में समर्थ है, और, उसके अतिरिक्त, मनुष्य को बचाने में समर्थ है। यद्यपि यह देह सामान्य एवं वास्तविक है, फिर भी यह आम देह नहीं है: यह ऐसी देह नहीं है जो महज मानवीय है, परन्तु ऐसी देह है मानवीय एवं ईश्वरीय दोनों है। यह मनुष्य से उसका अन्तर है, और परमेश्वर की पहचान का चिन्ह है। केवल ऐसी देह ही वह काम कर सकता है जिसे वह करने का इरादा करता है, और देह में परमेश्वर की सेवा को पूरा कर सकता है, और मनुष्यों के बीच में अपने कार्य को पूरी तरह से पूर्ण कर सकता है। यदि यह ऐसा नहीं होता, तो उसका कार्य हमेशा मनुष्य के मध्य खोखला एवं त्रुटिपूर्ण होता। यद्यपि परमेश्वर शैतान के आत्मा के साथ युद्ध कर सकता है और विजयी होकर उभर सकता है, फिर भी भ्रष्ट हो चुके मनुष्य के पुराने स्वभाव का समाधान कभी नहीं किया जा सकता है, और ऐसे लोग जो उसके प्रति अनाज्ञाकारी हैं और उसका विरोध करते हैं वे उसके प्रभुत्व के अधीन कभी नहीं हो सकते हैं, कहने का तात्पर्य है, वह कभी मानवजाति को जीत नहीं सकता है, और समूची मानवजाति को दोबारा कभी अर्जित नहीं कर सकता है। यदि पृथ्वी पर उसके कार्य का समाधान नहीं किया जा सकता है, तो उसके प्रबन्धन को कभी भी समाप्ति की ओर नहीं लाया जाएगा, और समूची मानवजाति विश्राम में प्रवेश करने में सक्षम नहीं होगी। यदि परमेश्वर अपने सभी जीवधारियों के साथ विश्राम में प्रवेश नहीं कर सकता है, तब ऐसे प्रबंधकीय कार्य का कभी कोई परिणाम नहीं होगा, और फलस्वरूप परमेश्वर की महिमा विलुप्त हो जाएगी। यद्यपि उसकी देह के पास कोई अधिकार नहीं है, फिर भी वह कार्य जिसे वह करता है अपने प्रभाव को हासिल कर चुका होगा। यह उसके कार्य का अनिवार्य निर्देशन है। इस बात की परवाह किए बगैर कि उसकी देह अधिकार को धारण करता है या नहीं, जब तक वह स्वयं परमेश्वर के कार्य को करने में सक्षम है, तब तक वह स्वयं परमेश्वर है। इसकी परवाह किए बगैर कि यह देह कितना सामान्य एवं साधारण है, वह उस कार्य को कर सकता है जिसे उसे करना चाहिए, क्योंकि यह देह परमेश्वर है और मात्र एक मनुष्य नहीं है। वह कारण कि देह वह कार्य कर सकता है जिसे मनुष्य नहीं कर सकता है क्योंकि उसका भीतरी मूल-तत्व किसी भी मनुष्य के समान नहीं है, और वह कारण कि वह मनुष्य का उद्धार कर सकता है क्योंकि उसकी पहचान किसी भी मनुष्य से अलग है। यह देह मानवजाति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह मनुष्य है और उससे भी बढ़कर परमेश्वर है, क्योंकि वह ऐसा काम कर सकता है जिसे हाड़-मांस का कोई सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता है, और क्योंकि वह भ्रष्ट मनुष्य का उद्धार कर सकता है, जो पृथ्वी पर उसके साथ मिलकर रहता है। यद्यपि वह मनुष्य के समान है, फिर भी देहधारी परमेश्वर किसी भी बेशकीमती व्यक्ति की अपेक्षा मानवजाति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह ऐसा कार्य कर सकता है जिसे परमेश्वर के आत्मा के द्वारा नहीं किया जा सकता है, वह स्वयं परमेश्वर की गवाही देने के लिए परमेश्वर के आत्मा की अपेक्षा अधिक सक्षम है, और मानवजाति को सम्पूर्ण रीति से अर्जित करने के लिए परमेश्वर के आत्मा की अपेक्षा अधिक सक्षम है। परिणामस्वरूप, यद्यपि यह देह सामान्य एवं साधारण है, फिर भी मानवजाति के निमित्त उसका योगदान और मानवजाति के अस्तित्व के निमित्त उसका महत्व उसे अत्यंत बहुमूल्य बना देता है, और इस देह का वास्तविक मूल्य एवं महत्व किसी भी मनुष्य के लिए अतुलनीय है। यद्यपि यह देह सीधे तौर पर शैतान का नाश नहीं कर सकता है, फिर भी वह मानवजाति को जीतने के लिए और शैतान को हराने के लिए अपने कार्य का उपयोग कर सकता है, और शैतान को सम्पूर्ण रीति से अपनी प्रभुता के अधीन कर सकता है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने देह धारण किया है इसलिए वह शैतान को हरा सकता है और वह मानवजाति का उद्धार करने में सक्षम है। वह सीधे तौर पर शैतान का विनाश नहीं करता है, परन्तु देह धारण करता है ताकि मानवजाति को जीतने के लिए कार्य करे, जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है। इस रीति से, वह सभी प्राणियों के मध्य स्वयं की बेहतर ढंग से गवाही देने में सक्षम है, और वह भ्रष्ट हो चुके मनुष्य को बेहतर ढंग से बचाने में सक्षम है। परमेश्वर के आत्मा के द्वारा शैतान के प्रत्यक्ष विनाश की अपेक्षा देहधारी परमेश्वर के द्वारा शैतान की पराजय बड़ी गवाही देती है, तथा यह और अधिक रज़ामन्द करने वाली बात है। देह में प्रगट परमेश्वर सृष्टिकर्ता को जानने के लिए मनुष्य की बेहतर ढंग से सहायता करने में सक्षम है, और सभी प्राणियों के मध्य स्वयं की बेहतर ढंग से गवाही देने में सक्षम है।

"वचन देह में प्रकट होता है" से                                                                   
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह   के लिए गवाहियाँ

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