28.10.18

4. अंतिम दिनों में अपने न्याय के कार्य को करने के लिए परमेश्वर मनुष्य का उपयोग क्यों नहीं करता, इसके बजाय उसे देह-धारण कर, स्वयं इसे क्यों करना पड़ता है?

     परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यह बिलकुल इसलिए है क्योंकि शैतान ने मनुष्य के शरीर को भ्रष्ट कर दिया है, और मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे परमेश्वर बचाने का इरादा करता है, यह कि परमेश्वर को शैतान के साथ युद्ध करने के लिए और व्यक्तिगत तौर पर मनुष्य की चरवाही करने के लिए देह का रूप लेना ही होगा। केवल यह ही उसके कार्य के लिए फायदेमंद है। शैतान को हराने के लिए परमेश्वर के दो देहधारण अस्तित्व में आए हैं, और साथ ही मनुष्य को बेहतर ढंग से बचाने के लिए अस्तित्व आए हैं।
यह इसलिए है क्योंकि वह जो शैतान के साथ युद्ध कर रहा है वह केवल परमेश्वर ही हो सकता है, चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या परमेश्वर का देहधारी शरीर। संक्षेप में, वह जो शैतान के साथ युद्ध कर रहा है वे स्वर्गदूत नहीं हो सकते हैं, मनुष्य तो बिलकुल भी नहीं हो सकता है, जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है। इसे अंजाम देने में स्वर्गदूत निर्बल हैं, और मनुष्य तो और भी अधिक असक्षम है। उसी रूप में, यदि परमेश्वर मनुष्य के जीवन के लिए कार्य करना चाहता है, यदि वह व्यक्तिगत रूप में पृथ्वी पर आकर मनुष्य के लिए काम करना चाहता है, तो उसे व्यक्तिगत तौर पर देह धारण करना होगा, अर्थात्, उसे व्यक्तिगत तौर पर उस देह को पहनना होगा, और अपनी अंतर्निहित पहचान एवं उस कार्य के साथ जिसे उसे करना होगा, मनुष्य के बीच आना होगा और व्यक्तिगत तौर पर मनुष्य का उद्धार करना होगा। यदि नहीं, यदि यह परमेश्वर का आत्मा या मनुष्य होता जिसने इस कार्य को किया था, तो यह युद्ध अपने प्रभावों को हासिल करने में हमेशा के लिए असफल हो जाता, और कभी समाप्त नहीं होता। जब परमेश्वर मनुष्य के बीच व्यक्तिगत तौर पर शैतान के साथ युद्ध करने के लिए देह धारण करता है केवल तभी मनुष्य के पास उद्धार का एक अवसर होता है। इसके अतिरिक्त, केवल तभी शैतान लज्जित होता है, और अंजाम देने के लिए उसके पास कोई अवसर या कोई योजना नहीं होती है। देहधारी परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को परमेश्वर के आत्मा के द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता है, और किसी शारीरिक मनुष्य के द्वारा परमेश्वर के स्थान पर इसे करना तो और भी अधिक कठिन है, क्योंकि वह कार्य जिसे वह करता है वह मनुष्य के जीवन की खातिर है, और मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के लिए है। यदि मनुष्य इस युद्ध में भाग लेता, तो वह खस्ताहाल अवस्था में भाग जाता, और मात्र मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलने में असमर्थ होता। वह उस क्रूस से मनुष्य को बचाने में, या सारी विद्रोही मानवजाति पर विजय प्राप्त करने में असमर्थ होता, परन्तु सिद्धान्त के अनुसार थोड़ा सा पुराना कार्य करने में सक्षम होता, या कोई और कार्य करने में सक्षम होता जो शैतान की पराजय से असम्बद्ध है। तो क्यों परेशान होना? उस कार्य का क्या महत्व जो मानवजाति को हासिल न कर सके, और शैतान को तो बिलकुल भी पराजित न कर सके? और इस प्रकार, शैतान के साथ युद्ध को केवल स्वयं परमेश्वर के द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है, पर इसे मात्र मनुष्य के द्वारा किया जाना असंभव है। मनुष्य का कर्तव्य है कि आज्ञा का पालन करे और अनुसरण करे, क्योंकि मनुष्य नए युग की शुरुआत करने (खोलने) के कार्य को करने में असमर्थ है, इसके अतिरिक्त, न ही वह शैतान के साथ युद्ध करने के कार्य को सम्पन्न कर सकता है। मनुष्य केवल स्वयं परमेश्वर के नेतृत्व के अधीन ही सृष्टिकर्ता को संतुष्ट कर सकता है, जिसके माध्यम से शैतान पराजित होता है; केवल यही वह एकमात्र कार्य है जो मनुष्य कर सकता है। और इस प्रकार, हर समय एक नया युद्ध प्रारम्भ होता है, कहने का तात्पर्य है, हर समय नए युग का कार्य शुरू होता है, इस कार्य को स्वयं परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत तौर पर किया जाता है, जिसके माध्यम से वह सम्पूर्ण युग की अगुवाई करता है, और सम्पूर्ण मानवजाति के लिए एक नए पथ को खोलता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से

Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ 

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