5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?(6)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन
यद्यपि देहधारी परमेश्वर एक सामान्य मानवीय मन रखता है, किन्तु उसका कार्य मानव विचार के द्वारा अपमिश्रित नहीं होता है; वह इस पूर्वशर्त के अधीन सामान्य मन के साथ मानवता में कार्य को अपने हाथ में लेता है, कि वह मानवता को मन के साथ धारण करता है, न कि सामान्य मानवीय विचारों को प्रयोग में लाने के द्वारा। इस बात पर ध्यान दिए बिना कि उसकी देह के विचार कितने उत्कृष्ट हैं, उसके कार्य पर तर्क या सोच का ठप्पा नहीं लगता है। दूसरे शब्दों में, उसका कार्य उसकी देह के मन के द्वारा कल्पना नहीं किया जाता है, बल्कि उसकी मानवता में दिव्य कार्य की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। उसका समस्त कार्य उसकी वह सेवकाई है जिसे उसे पूरा करने की आवश्यकता है, और इनमें से कोई भी उसके मस्तिष्क द्वारा कल्पना नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, बीमार को चंगा करना, दुष्टात्माओं को निकालना, और सलीब पर चढ़ना उसके मानवीय मन के परिणाम नहीं थे, किसी मानवीय मन वाले किसी भी मनुष्य द्वारा प्राप्त नहीं किए जा सकते थे। इसी तरह, आज का जीतने का कार्य ऐसी सेवकाई है जो देहधारी परमेश्वर के द्वारा अवश्य की जानी चाहिए, किन्तु यह किसी मानवीय इच्छा का कार्य नहीं है, यह ऐसा कार्य है जो उसकी दिव्यता को करना चाहिए, ऐसा कार्य जिसे करने में कोई भी दैहिक मानव सक्षम नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" से
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