वर्तमान में किए गए कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना में कार्य आगे बढ़ाया है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने आगे प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? इसका अर्थ है कि आज के दिन का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य का उत्थान है।
7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(1)
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा" (इब्रानियों 9:28)।
"आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था" (युहन्ना 1:1)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
प्रथम देहधारण यीशु की देह के माध्यम से मनुष्य को पाप से छुटकारा देने के लिए था, अर्थात्, उसने मनुष्य को सलीब से बचाया, परन्तु भ्रष्ट शैतानी स्वभाव तब भी मनुष्य के भीतर रह गया था। दूसरा देहधारण अब और पापबलि के रूप में कार्य करने के लिए नहीं है परन्तु उन्हें पूरी तरह से बचाने के लिए है जिन्हें पाप से छुटकारा दिया गया था।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(13)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
उस समय यीशु का कार्य समस्त मानव जाति का छुटकारा था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; जितने समय तक तुम उस पर विश्वास करते थे, उतने समय तक वह तुम्हें छुटकारा देगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते थे, तो तुम अब और पापी नहीं थे, तुम अपने पापों से मुक्त हो गए थे।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(12)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
उस समय यीशु के कथन एवं कार्य सिद्धान्त को थामे हुए नहीं थे, और उसने अपने कार्य को पुराने नियम की व्यवस्था के कार्य के अनुसार सम्पन्न नहीं किया था। यह उस कार्य के अनुसार था जिसे अनुग्रह के युग में किया जाना चाहिए। उसने उस कार्य के अनुसार, अपने स्वयं की योजनाओं के अनुसार, और अपने सेवकाई के अनुसार परिश्रम किया था जिसे वह आगे लाया था; उसने पुराने नियम की व्यवस्था के अनुसार कार्य नहीं किया था।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(11)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
अनुग्रह के युग के कार्य में, यीशु परमेश्वर था जिसने मनुष्य को बचाया। उसका स्वरूप अनुग्रह, प्रेम, करुणा, सहनशीलता, धैर्य, विनम्रता, देखभाल और सहिष्णुता, और उसने जो इतना अधिक कार्य किया वह मनुष्य का छुटकारा था।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(10)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
जब यीशु आया, तो उसने भी परमेश्वर के कार्य का एक भाग पूरा किया, और कुछ वचनों को कहा—किन्तु वह कौन सा प्रमुख कार्य था जो उसने सम्पन्न किया? उसने मुख्यरूप से जो संपन्न किया, वह था सलीब पर चढ़ने का कार्य।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(9)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के लिए आया। उसने मनुष्य के प्रति दया और करुणा दिखायी। मनुष्य ने अनुग्रह के युग में जिस यीशु को देखा वह करुणा से भरा हुआ और हमेशा ही प्रेममय था, क्योंकि वह मनुष्य को पाप से मुक्त कराने के लिए आया था।
2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(8)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
यद्यपि यीशु, अपने देहधारण में पूरी तरह से भावना रहित था, फिर भी वह हमेशा अपने चेलों को दिलासा देता था, उनका भरण-पोषण करता था, उनकी सहायता करता था और उन्हें जीवित रखता था। उसने कितना भी अधिक कार्य किया या उसने कितना भी अधिक दर्द सहा, फिर भी उसने कभी भी लोगों से बहुत ज़्यादा माँग नहीं की, बल्कि उनके पापों के प्रति हमेशा धैर्यवान था और सहनशील था, इतना कि अनुग्रह के युग में लोग उसे स्नेह के साथ "प्यारा उद्धारकर्ता यीशु" कहते थे।
1. मानव जाति के प्रबंधन से सम्बंधित परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के उद्देश्य को जानो।(6)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मनुष्य का प्रबंधन करना मेरा कार्य है, और मेरे द्वारा उसे जीत लिया जाना और भी अधिक कुछ चीज़ है जो तब नियत की गई थी जब मैंने संसार की रचना की थी। हो सकता है कि लोग नहीं जानते हों कि अंत के दिनों में मैं उन्हें पूरी तरह से जीत लूँगा और हो सकता है कि वे इस बारे में भी अनजान हों कि मानवजाति में से विद्रोही लोगों को जीत लेना ही शैतान को मेरे द्वारा हराने का प्रमाण है।
मेरी सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना, ऐसी योजना जो छः हज़ार सालों तक फैली हुई है, तीन चरणों या तीन युगों को शामिल करती हैः आरंभ में व्यवस्था का युग; अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत के दिनों में राज्य का युग।
Hindi Christian Documentary "वह जिसका हर चीज़ पर प्रभुत्व है" | Testimony of the Power of God
पूरे विशाल ब्रह्मांड में सभी आकाशीय पिण्ड सटीक रीति से, अपनी-अपनी कक्षाओं में भ्रमण करते हैं। आकाश के तले, पहाड़ों, नदियों और झीलों की अपनी-अपनी सीमाएं होती हैं, और सभी प्राणी जीवन के नियमों के अनुसार चार मौसमों में रहते हुए प्रजनन करते हैं ..इन सबको अत्यंत विशिष्टता से आकार दिया गया है-क्या कोई शक्तिमान है जो इन सब पर शासन और इनकी व्यवस्था कर रहा है? इस जगत में रोते हुए आने से लेकर, हमने जीवन में अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं। जन्म से बुढ़ापा, फिर रोग, फिर मृत्यु, हम ग़म और ख़ुशी के बीच जीते रहते हैं ... दरअसन दरअसल कहाँ से आता है और हम वास्तव में कहाँ चले जाते हैं? हमारी नियति को कौन नियंत्रित कर रहा है? प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक, महान राष्ट्रों का उदय हुआ, अनेक वंश आए और गए, अनेक देशों और मनुष्यों का उत्थान हुआ और फिर वे काल के गाल में समा गए ... प्रकृति के नियमों की तरह, मानवता के विकास में भी अनंत रहस्य निहित हैं। क्या आप इनके उत्तर जानना चाहेंगे? वह जिसका हर चीज़ पर प्रभुत्व है नामक डॉक्यूमेंटरी आपको इसके मूल तक पहुँचने का रास्ता दिखाएगी, हर रहस्य पर से पर्दा हटाएगी!