2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(12)
(2) अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
उस समय यीशु के कथन एवं कार्य सिद्धान्त को थामे हुए नहीं थे, और उसने अपने कार्य को पुराने नियम की व्यवस्था के कार्य के अनुसार सम्पन्न नहीं किया था। यह उस कार्य के अनुसार था जिसे अनुग्रह के युग में किया जाना चाहिए। उसने उस कार्य के अनुसार, अपने स्वयं की योजनाओं के अनुसार, और अपने सेवकाई के अनुसार परिश्रम किया था जिसे वह आगे लाया था; उसने पुराने नियम की व्यवस्था के अनुसार कार्य नहीं किया था।उसने ऐसा कुछ भी नहीं था जो पुराना नियम की व्यवस्था के अनुसार था, और वह भविष्यवक्ताओं के वचनों को पूरा करने के कार्य को करने के लिए नहीं आया था। परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण स्पष्ट रूप से प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों को पूरा करने के लिए नहीं था, वह सिद्धान्त में बने रहने या प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों का जान-बूझकर एहसास करने के लिए नहीं आया था। फिर भी उसके कार्यों ने प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों में अड़चन नहीं डाली थी, न ही उन्होंने उस कार्य में विघ्न डाला था जो उसने पहले किया था। उसके कार्य का प्रमुख बिन्दु किसी सिद्धान्त के द्वारा बने रहना, और उस कार्य को करना नहीं था जिसे उसे स्वयं करना चाहिए था। वह एक भविष्यवक्ता या दर्शी नहीं था, परन्तु कार्य करने वाला था, जो वास्तव में उस कार्य को करने आया था जिसे करने की अपेक्षा उससे की गई थी, और अपने नए युग को शुरू करने और अपने नये कार्य को सम्पन्न करने के लिए आया था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में" से
एक नया युग केवल तभी हो सका था जब यीशु नया कार्य करने के लिए आया, उसने नए युग की शुरुआत की, और उस कार्य को तोड़ कर बाहर आ गया जो इस्राएल में पहले किया गया था, और इस्राएल में यहोवा द्वारा किए गएकार्य के अनुसार अपना कार्य नहीं किया, उसके पुराने नियमों का पालन नहीं किया, और किसी भी विनियम का पालन नहीं किया, और वह नया कार्य किया जो उसे करना चाहिए था। युग का आरंभ करने के लिए परमेश्वर स्वयं आता है, और युग का अंत करने के लिए परमेश्वर स्वयं आता है। युग का आरंभ और युग का समापन करने का कार्य करने में मनुष्य असमर्थ है। यदि यीशु यहोवा का कार्य समाप्त नहीं करता, तो इससे यह साबित होता कि वह केवल एक आदमी था, और उसने परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं किया था। निश्चित रूप से क्योंकि यीशु आया और यहोवा के कार्य का समापन किया, अपना स्वयं का कार्य, नया कार्य, शुरू करके यहोवा के कार्य को आगे बढ़ाया, इससे यह साबित होता है कि यह एक नया युग था, और यह कि यीशु परमेश्वर स्वयं था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
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