26.7.18

"मायाजाल को तोड़ दो"(3)-क्या बाइबल के अतिरिक्त परमेश्वर के शब्दों का कोई अस्तित्व है?



"मायाजाल को तोड़ दो"(3)-क्या बाइबल के अतिरिक्त परमेश्वर के शब्दों का कोई अस्तित्व है?



कुछ धार्मिक लोग मानते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में हैं, और बाइबल के अलावा परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य नहीं है। क्या इस तरह का विचार सत्य के अनुसार है? बाइबल कहती है, "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं।" (यूहन्ना 21: 25)

25.7.18

परमेश्वर में आस्था" (4) - क्या बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करने के समान है?



परमेश्वर में आस्था" (4) - क्या बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करने के समान है?


धार्मिक संसार में अधिकांश लोग यह मानते हैं कि बाइबल ईसाई धर्म की कसौटी है, व्यक्ति को बाइबल का पालन करना चाहिए तथा प्रभु में व्यक्ति के विश्वास का आधार पूरी तरह से बाइबल में होना चाहिए, और अगर कोई बाइबल से अलग होता है तो उसे विश्वासी नहीं समझा जाएगा। इसलिए क्या प्रभु में विश्वास रखना और बाइबल में विश्वास रखना एक ही बात है? बाइबल और प्रभु के बीच वास्तव में क्या संबंध है? एक बार प्रभु यीशु ने प्राचीन यहूदी समुदाय को इन शब्दों के बारे में फटकार लगाई थी, "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।" (यूहन्ना 5 : 39-40) बाइबल मात्र परमेश्वर की गवाही है, परंतु इसमें अनन्त जीवन नहीं है। केवल परमेश्वर ही सत्य, मार्ग, और जीवन है। उस मामले में, हम बाइबल को किस नज़र से देखें कि वह प्रभु की इच्छा के अनुरूप हो?

23.7.18

परमेश्वर ने आपदा से हमारे परिवार की रक्षा की

परमेश्वर ने आपदा से हमारे परिवार की रक्षा की

वैंग लैन, बीजिंग

6 अगस्त, 2012

21 जुलाई 2012 को, साठ वर्षों में सबसे बड़ी बाढ़ ने हमारे गांव को तहस—नहस कर दिया। यह आपदा स्वर्ग से गिरी थी, बाढ़ के पानी में मिट्टी और पत्थर मिश्रित थे एवं इसने पूरे गांव को तबाह कर दिया था। अधिकांश घरों को पानी व कीचड़ के भूस्खलन ने नष्ट कर दिया था।


22.7.18

अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X सब वस्तुओं के जीवन का स्रोत परमेश्वर है (IV)" (भाग एक)



अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X सब वस्तुओं के जीवन का स्रोत परमेश्वर है (IV)" (भाग एक)


इस वीडियो में परमेश्वर के वचन "वचन देह में प्रकट होता है" पुस्तक से हैं। इस वीडियो की सामग्री:
1. मनुष्य के लिए यहोवा परमेश्वर की आज्ञा
2. सर्प के द्वारा स्त्री को बहकाया जाना

19.7.18

अंततः मैं एक मनुष्य की तरह थोड़ा जीवन व्यतीत करता हूँ

अंततः मैं एक मनुष्य की तरह थोड़ा जीवन व्यतीत करता हूँ

ज़ियांग वांग सिचुआन प्रांत

मैं हर बार अपने हृदय की गहराई से ताड़ना महसूस करता हूँ, जब भी मैं देखता हूँ कि परमेश्वर के वचन कहते हैं कि: "क्रूर, निर्दयी मानवजाति! साँठगाँठ और साज़िश, आपस में धक्का-मुक्की, सम्मान और संपत्ति के लिए छीनाझपटी, एक-दूसरे का कत्ल करना-आखिर ये सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर ने लाखों वचन कहे हैं, तब भी किसी को अभी तक अक़्ल नहीं आई है। वे अपने परिवार, और बेटों और बेटियों के वास्ते, आजीविका, हैसियत, अभिमान, और पैसों के लिए, कपड़ों के वास्ते, भोजन और देह क्रिया करते हैं-किसकी क्रियाएँ वास्तव में परमेश्वर के लिए हैं? यहाँ तक कि उनमें से भी जिनकी क्रियाएँ परमेश्वर के वास्ते हैं, मात्र थोड़े ही हैं जो परमेश्वर को जानते हैं।

18.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, और उसकी बुद्धि और आश्चर्य को जान सके। उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके। वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है।"

16.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 2)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 2)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ, आकाश और पृथ्वी, और उसके भीतर की सारी चीज़ें क्या पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा के द्वारा बनाई गई थीं? कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने यह सब एक साथ बनाया। फिर किसने मानवजाति को छुड़ाया? क्या यह पवित्र आत्मा था, पुत्र था या पिता? कुछ लोग कहते हैं कि वह पुत्र था जिसने मानवजाति को छुड़ाया था। फिर सार में पुत्र कौन है? क्या वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण नहीं है? एक सृजित आदमी के परिप्रेक्ष्य से देहधारी स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाता है। क्या तुम नहीं जानते हो कि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण से हुआ था? उसके भीतर पवित्र आत्मा है; तुम कुछ भी कहो, वह अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ एकसार है, क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। पुत्र का यह विचार असत्य है। यह एक आत्मा है जो सभी काम करता है; केवल परमेश्वर स्वयं, अर्थात, परमेश्वर का आत्मा अपना काम करता है।"

14.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, और उसकी बुद्धि और आश्चर्य को जान सके। उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके। वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है।"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 1)"



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 1)"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ, आकाश और पृथ्वी, और उसके भीतर की सारी चीज़ें क्या पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा के द्वारा बनाई गई थीं? कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने यह सब एक साथ बनाया।

12.7.18

"परमेश्वर में आस्था" (6) - परमेश्वर में सच्चे विश्वास का क्या अर्थ है?




"परमेश्वर में आस्था" (6) - परमेश्वर में सच्चे विश्वास का क्या अर्थ है?

बहुत से लोगों का मानना है कि परमेश्वर में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है, और प्रभु के लिए कष्ट उठाकर कार्य करना परमेश्वर में विश्वास करने की वास्तविकता है। इस धार्मिक संसार में कोई भी अच्छे प्रकार से यह नहीं समझ पाया कि परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने का अर्थ क्या है। "परमेश्वर पर विश्वास" का अर्थ, यह विश्वास करना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर पर विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे बढ़कर यह बात है कि परमेश्वर है, यह मानना परमेश्वर पर सचमुच विश्वास करना नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक प्रभाव के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का अर्थ इस विश्वास के आधार पर परमेश्वर के वचनों और कामों का अनुभव करना है कि परमेश्वर सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखता है। इस तरह से तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त हो जाओगे, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करोगे और परमेश्वर को जान जाओगे। केवल इस प्रकार की यात्रा के माध्यम से ही तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास करने वाला कहा जा सकता है। ""वचन देह में प्रकट होता है" से

11.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)




सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "चाहे देहधारी परमेश्वर बोले, कार्य करे, या चमत्कार प्रकट करे, वह अपने प्रबंधन के अंतर्गत महान कार्य कर रहा है, और इस प्रकार का कार्य उसके बदले मनुष्य नहीं कर सकता है। मनुष्य का कार्य केवल सृजन किए गए प्राणी के रूप में परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के किसी दिए गए चरण में सिर्फ़ अपना कर्तव्य करना है। इस प्रकार के प्रबंधन के बिना, अर्थात्‌, यदि देहधारी परमेश्वर की सेवकाई खो जाती है, तो सृजित प्राणी का कर्तव्य भी खो जायेगा। अपनी सेवकाई को करने में परमेश्वर का कार्य मनुष्य का प्रबंधन करना है, जबकि मनुष्य का कर्तव्य करना सृष्टा की माँगों को पूरा करने के लिए अपने स्वयं के दायित्वों का प्रदर्शन है और किसी भी तरह से किसी की सेवकाई करना नहीं माना जा सकता है। परमेश्वर, अर्थात्‌, पवित्रात्मा के अंतर्निहित सार के लिए, परमेश्वर का कार्य उसका प्रबंधन है, किन्तु एक सृजन किए गए प्राणी का बाह्य स्वरूप पहने हुए देहधारी परमेश्वर के लिए, उसका कार्य अपनी सेवकाई को पूरा करना है। वह जो कुछ भी कार्य करता है वह अपनी सेवकाई को करने के लिए करता है, और मनुष्य केवल उसके प्रबंधन के क्षेत्र के भीतर और उसकी अगुआई के अधीन ही अपना सर्वोत्तम कर सकता है।"

10.7.18

मौत के मुंह से



मौत के मुंह से



अठत्तर साल की बूढी लियू झेन, एक आम देहाती गृहिणी है।परमेश्वर में विश्वास करने के बाद से, उसे हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़ने, उनकी यशगान स्तुति करने और अक्सर अपने भाई-बहनों के साथ संगति करने में अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती … लेकिन हर अच्छी चीज़ अस्थाई होती है। उसे चीनी कम्युनिस्ट सरकार गिरफ्तार कर यातना देती है और एक भयंकर स्थिति में डाल देती है। पुलिस उसे तीन बार पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन ले जाती है और उसे चेतावनी देती है कि वह अब परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दे। वे उसकी निगरानी करते हैं और उसे डराने के लिए उसके घर पहुँच जाते हैं। चीनी कम्युनिस्ट सरकार के दबाव में आकर, उसका पति, बेटा और बहू भी परमेश्वर में उसके विश्वास का विरोध करते हैं और उस पर पाबंदी लगा देते हैं। इस पीड़ा के दौरान वह सच्चे मन से परमेश्वर में अपनी आस्था बनाए रखती है और उनसे याचना करती है।

9.7.18

परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 2)


परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 2)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चाहे देहधारी परमेश्वर बोले, कार्य करे, या चमत्कार प्रकट करे, वह अपने प्रबंधन के अंतर्गत महान कार्य कर रहा है, और इस प्रकार का कार्य उसके बदले मनुष्य नहीं कर सकता है। मनुष्य का कार्य केवल सृजन किए गए प्राणी के रूप में परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के किसी दिए गए चरण में सिर्फ़ अपना कर्तव्य करना है। इस प्रकार के प्रबंधन के बिना, अर्थात्‌, यदि देहधारी परमेश्वर की सेवकाई खो जाती है, तो सृजित प्राणी का कर्तव्य भी खो जायेगा।

4.7.18

परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है




परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है


परमेश्वर का स्वभाव प्रतापी है और क्रोध से भरा है।
वो मेमना नहीं है जो उसका कोई भी वध कर दे।
वो कठपुतली नहीं है जो हो जैसा चाहे नचा ले,
न वो है हवा जो कोई उसपर, हुक्म चला ले।
परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है।
परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है।
गर परमेश्वर के वजूद में सचमुच यकीं रखते हो,
तो जिसमें ख़ौफ़ हो उसका, तुम ऐसा दिल रखो।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "बीते समयों में, अनेक लोग मनुष्य की महत्वाकांक्षा और धारणाओं के साथ मनुष्य की आशाओं के लिए आगे बढ़े। अब इन मामलों पर चर्चा नहीं की जाएगी। कुंजी है अभ्यास का ऐसा ढंग खोजना जो तुम में से हर एक को परमेश्वर के सम्मुख एक सामान्य स्थिति बनाये रखने और धीरे-धीरे शैतान के प्रभाव की बेड़ियों को तोड़ डालने में सक्षम करे, ताकि तुम परमेश्वर को प्राप्त हो सको और पृथ्वी पर वैसे जियो जैसे परमेश्वर तुमसे चाहता है। केवल इसी से परमेश्वर की इच्छा पूरी हो सकती है।"

3.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास" (भाग दो)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास" (भाग दो)


मनुष्य के बीच परमेश्वर का कार्य मनुष्य से अवियोज्य है, क्योंकि मनुष्य इस कार्य का लक्ष्य है, और परमेश्वर के द्वारा रचा गया एकमात्र ऐसा प्राणी है जो परमेश्वर की गवाही दे सकता है। मनुष्य का जीवन और मनुष्य के समस्त क्रियाकलाप परमेश्वर से अवियोज्य हैं, और उन सब को परमेश्वर के हाथों के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, और यहाँ तक कि यह भी कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर से स्वाधीन होकर अस्तित्व में नहीं रह सकता है। कोई भी इसे नकार नहीं सकता है, क्योंकि यह एक तथ्य है। वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है मनुष्यजाति के लाभ के लिए है, और शैतान के षडयन्त्रों की ओर निर्देशित है।

2.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर"


परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर

तुम कितनी धार्मिक परम्पराओं का पालन करते हो? कितनी बार तुमने परमेश्वर के वचन का विरोध किया है और अपने तरीके से चले हो? कितनी बार तुम परमेश्वर के वचनों को इसलिए अभ्यास में लाए हो क्योंकि तुम उसके उत्तरदायित्व के बारे में सच में विचारशील हो और उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हो? परमेश्वर के वचन को समझो और उसे अभ्यास में लाओ। क्रियाओं और कर्मों में उच्च सिद्धांत वाले बनो; यह नियम में बंधना या बेमन से बस दिखावे के लिए ऐसा करना नहीं है।

1.7.18

चीन में धार्मिक उत्पीड़न का इतिहास: पर्दा उठता है



चीन में धार्मिक उत्पीड़न का इतिहास: पर्दा उठता है

वर्ष 1949 में मेनलैण्ड चीन में सत्ता में आने के बाद से, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक आस्था का निरंतर उत्पीड़न करने में लगी रही है। पागलपन में यह ईसाइयों को बंदी बना चुकी है और उनकी हत्या कर चुकी है, चीन में काम कर रहे मिशनरियों को निष्काषित कर चुकी है और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा चुका है, बाइबल की अनगिनत प्रतियां जब्त कर जला दी गयीं हैं, कलीसिया की इमारतों को सीलबंद कर दिया गया है और ढहाया जा चुका है, और सभी गृह कलीसिया को जड़ से उखाड़ फैंकने का प्रयास किया जा चुका है। यह वृत्तचित्र फिल्म एक चीनी ईसाई, सोंग शाओलान की अचानक हुई रहस्मयी मौत का वर्णन करती है - एक ऐसी मौत जिसके लिए सीसीपी पुलिस लगातार असंगत और विवादित बयान देती रही। जांच के बाद, सोंग परिवार को मालूम पड़ा कि पुलिस पूरी तरह से झूठ बोल रही थी।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...