11.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(10)

   परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     क्योंकि वे सभी जो देह में जीवन बिताते हैं, उन्हें अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए अनुसरण हेतु लक्ष्यों की आवश्यकता होती है, और परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वास्तविक कार्यों एवं वास्तविक चेहरे को को देखने की आवश्यकता होती है। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी शरीर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है, और दोनों को सिर्फ साधारण एवं वास्तविक देह के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। इसी लिए देहधारण ज़रूरी है, और इसी लिए समस्त भ्रष्ट मानवजाति को इसकी आवश्यकता होती है।

10.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(9)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     यदि परमेश्वर देहधारण नहीं करते, अपना कार्य न किए होते और लोगों के सामने आकर उनकी अगुआई नहीं की होती, अगर वे लोगों के साथ संपर्क में नहीं आते और हर समय लोगों के साथ न रहते, तो लोगों के लिए वास्तव में परमेश्वर के प्रेम को समझना आसान न होता।

9.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(8)

    परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    परमेश्वर की सुन्दरता उसके कार्यों में व्यक्त होती हैः केवल जब वे उसके कार्य का अनुभव करते हैं तभी वे उसकी सुन्दरता को खोज सकते हैं, वे केवल अपने वास्तविक अनुभव में ही परमेश्वर की सुन्दरता की सराहना कर सकते हैं और बिना उसे वास्तविक जीवन में महसूस किए, कोई भी परमेश्वर की सुन्दरता को नहीं खोज सकता है। परमेश्वर के बारे में प्रेम करने को बहुत कुछ है, परन्तु बिना उसके साथ संगति किए लोग उसे खोजने में अक्षम हैं।

8.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(7)

जब पतरस ने यीशु के बुलावे को स्वीकार किया, तब उसने उसका अनुसरण किया।

यीशु का अनुसरण करने के अपने समय के दौरान, उसके बारे में उसके कई अभिमत थे और वह अपने परिप्रेक्ष्य से आँकलन करता था। यद्यपि पवित्रात्मा के बारे में उसकी एक निश्चित अंश में समझ थी, तब भी पतरस बहुत प्रबुद्ध नहीं था, इसलिए वह अपनी बातों में कहता हैः "मुझे उसका अवश्य अनुसरण करना चाहिए जिसे स्वर्गिक पिता द्वारा भेजा जाता है। मुझे उसे अवश्य अभिस्वीकृत करना चाहिए जो पवित्र आत्मा के द्वारा चुना जाता है। मैं तेरा अनुसरण करूँगा।"

7.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(6)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

   तुम लोगों को परमेश्वर के कार्य को जानना होगा। केवल यीशु का अनुसरण करने के द्वारा ही पतरस ने पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु में किए गए अधिकांश कार्य को धीरे-धीरे समझा। उसने कहा, "मनुष्य के अनुभवों पर भरोसा करना परमेश्वर के पूरे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है; परमेश्वर के कार्य में ऐसी काफी नई बातें होनी चाहिए जो परमेश्वर को जानने में हमारी सहायता कर सकें।"

6.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(5)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

    परमेश्वर की सम्पत्ति और परमेश्वरत्व, परमेश्वर का सत्व, परमेश्वर का स्वभाव - यह सब कुछ मानवजाति को उसके वचन के माध्यम से समझाया जा चुका है। जब इंसान परमेश्वर के वचन को अनुभव करेगा, तो परमेश्वर के कहे हुए वचन के पीछे छिपे हुए उद्देश्यों को समझेगा, तो उनके अनुपालन की प्रक्रिया में, परमेश्वर के वचन की पृष्ठभूमि तथा स्रोत और परमेश्वर के वचन के अभिप्रेरित प्रभाव को समझेगा तथा सराहना करेगा।

5.1.19

10. यह क्यों है कि केवल देह-धारी परमेश्वर के कार्य के अनुभव और आज्ञा-पालन करने के द्वारा ही कोई परमेश्वर को जान सकता है?(4)

     परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
   
    उस कार्य के क्षेत्र के भीतर जिसे प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में पूर्ण किया था, तुम जो परमेश्वर का स्वरूप है उसका दूसरा पहलू भी देख सकते हो। यह उसके शरीर के द्वारा प्रकट हुआ था, और उसे लोगों के लिए संभव किया गया था ताकि वे देखें और उसकी मानवता में होकर तारीफ करें। मनुष्य के पुत्र में, लोगों ने देखा कि किस प्रकार देहधारी परमेश्वर ने अपनी मानवता में जीवन बिताया था, और उन्होंने परमेश्वर की ईश्वरीयता को देखा जो उसकी देह के द्वारा प्रकट हुआ था।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...