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14.10.18

3. देह-धारी परमेश्वर के कार्य और आत्मा के कार्य के बीच क्या अंतर है?(1)

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"मूसा ने कहा, "मुझे अपना तेज दिखा दे। उसने कहा, … तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता" (निर्गमन 33:18-20).

24.9.18

II. मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए

2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(6)

(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था।

23.9.18

II. मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए

2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(5)

(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यहोवा का कार्य मनुष्य का सीधे नेतृत्व करना और व्यवस्थाओं की स्थापना करके मनुष्य की चरवाही करना था ताकि मनुष्य एक सामान्य जीवन जी सके और पृथ्वी पर सामान्य रूप से यहोवा की आराधना कर सके।

21.9.18

II. मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए

2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(3)

(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अतः, तुम लोगों ने व्यवस्था के युग की इन रीति विधियों एवं सिद्धान्तों को पढ़ा है, हाँ? क्या ये रीति विधियां एक व्यापक दायरे को घेरती हैं? पहला, वे दस आज्ञाओं को घेरती हैं, जिसके बाद रीति विधियां हैं कि वेदी कैसे बनाएं, एवं इत्यादि। इनके बाद सब्त का पालन करने एवं तीन पर्वां को मनाने की रीति विधियां आती हैं, जिसके बाद बलिदान चढ़ाने की रीति विधियां हैं।

20.9.18

II. मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए

2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(2)
(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आरंभ में, पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान मनुष्य का मार्गदर्शन करना एक बच्चे के जीवन का मार्गदर्शन करने जैसा था। आरंभिक मानवजाति यहोवा की नवजात थी, जो इस्राएली थी। उनकी समझ में नहीं आया कि कैसे परमेश्वर का सम्मान करें या पृथ्वी पर रहें। जिसका अर्थ है, कि यहोवा ने मानवजाति को बनाया, अर्थात् उसने आदम और हव्वा को बनाया, किन्तु उसने उन्हें समझने के लिए आंतरिक शक्तियाँ नहीं दी कि कैसे यहोवा का सम्मान करें या पृथ्वी पर यहोवा की व्यवस्था का अनुसरण करें।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...