2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(5)
(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यहोवा का कार्य मनुष्य का सीधे नेतृत्व करना और व्यवस्थाओं की स्थापना करके मनुष्य की चरवाही करना था ताकि मनुष्य एक सामान्य जीवन जी सके और पृथ्वी पर सामान्य रूप से यहोवा की आराधना कर सके। व्यवस्था के युग में परमेश्वर एक ही था जिसे मनुष्य के द्वारा न तो देखा जा सकता था और न ही छुआ जा सकता था। वह केवल शैतान द्वारा पहले भ्रष्ट किए गए मनुष्य की अगुवाई करता था, और वह वहाँ उन मनुष्य को निर्देश देने और उनकी चरवाही करने के लिए था, इसलिए जो वचन उसने कहे वे केवल विधान, अध्यादेश और मनुष्य के रूप में जीवन जीने का सामान्य ज्ञान थे, और उस सत्य के बिल्कुल नहीं थे जो मनुष्य को जीवन प्रदान करता है। उसकी अगुवाई में इस्राएली वे नहीं थे जिन्हें शैतान के द्वारा गहराई तक भ्रष्ट किया गया था। उसका व्यवस्था का कार्य उद्धार के कार्य में केवल सबसे पहला चरण, उद्धार के कार्य का एकदम आरम्भ था, और इसका व्यावहारिक रूप से मनुष्य के जीवन स्वभाव में परिवर्तनों से कुछ लेना-देना नहीं था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें