2. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।(2)
(1) व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आरंभ में, पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान मनुष्य का मार्गदर्शन करना एक बच्चे के जीवन का मार्गदर्शन करने जैसा था। आरंभिक मानवजाति यहोवा की नवजात थी, जो इस्राएली थी। उनकी समझ में नहीं आया कि कैसे परमेश्वर का सम्मान करें या पृथ्वी पर रहें। जिसका अर्थ है, कि यहोवा ने मानवजाति को बनाया, अर्थात् उसने आदम और हव्वा को बनाया, किन्तु उसने उन्हें समझने के लिए आंतरिक शक्तियाँ नहीं दी कि कैसे यहोवा का सम्मान करें या पृथ्वी पर यहोवा की व्यवस्था का अनुसरण करें। यहोवा के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के बिना, कोई भी इसे सीधे नहीं जान सकता था, क्योंकि आरंभ में मनुष्य ऐसी आंतरिक शक्तियों से सम्पन्न नहीं था। मनुष्य केवल यह जानता था कि यहोवा ही परमेश्वर है, और उसे पता नहीं था कि उसका सम्मान करने के लिए क्या करना है, किस मन से उसका सम्मान करना है, और उसके आदर में क्या चढ़ाना है। मनुष्य केवल यह जानता था कि उस चीज का आनंद कैसे लिया जाए जिसका यहोवा द्वारा निर्माण की गई सभी चीजों के बीच आनंद उठाया जा सकता है। मनुष्य को कोई आभास नहीं था कि धरती पर किस प्रकार का जीवन परमेश्वर के एक प्राणी के अनुकूल होता है। निर्देशों के बिना, व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन करने वाले किसी के बिना, इस तरह की मानवजाति कभी एक उचित जीवन नहीं जी सकती थी, और केवल शैतान द्वारा ही चुपके से बंदी बनायी जा सकती थी। यहोवा ने मानवजाति का निर्माण किया, जिसका अर्थ है कि उसने मानवजाति के पूर्वजों: हव्वा और आदम का सृजन किया। किन्तु उसने उन्हें आगे कोई ज्ञान या बुद्धि प्रदान नहीं की। यद्यपि वे पहले से ही पृथ्वी पर रह रहे थे, किन्तु उन्हें समझ में लगभग कुछ नहीं आता था। और इसलिए,मानवजाति को बनाने का यहोवा का कार्य केवल आधा-समाप्त हुआ था। यह किसी भी तरह से पूर्ण नहीं था। उसने केवल मिट्टी से मनुष्य का एक नमूना बनाया था और उसे अपनी साँस दे दी थी, किन्तु उसने उसका सम्मान करने की मनुष्य को पर्याप्त इच्छा प्रदान नहीं की थी। आरंभ में, मनुष्य का मन परमेश्वर को सम्मान देने, या उससे डरने के लिए नहीं था। मनुष्य केवल यह जानता था कि उसकेवचनों को कैसे सुनना है, किन्तु पृथ्वी पर जीवन के बुनियादी ज्ञान और जीवन के उचित नियमों के बारे में अनभिज्ञ था। और इसीलिए, यद्यपि यहोवा ने मनुष्य और स्त्री का सृजन किया और सात दिन का उद्यम पूरा किया, किन्तु उसने मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण नहीं किया, क्योंकि मनुष्य केवल एक भूसा था, और वास्तव में एक मनुष्य नहीं था। मनुष्य केवल यह जानता था कि यह यहोवा था जिसने मानवजाति कासृजन किया था, किन्तु मनुष्य को इस बात का कोई आभास नहीं था कि कैसे यहोवा के वचनों और व्यवस्थाओं का पालन किया जाए। और इसलिए, मानव जाति के सृजन के बाद, यहोवा का कार्य अभी ख़त्म होने से बहुत दूर था। उसे अपने सामने मानवजाति का पूरी तरह से मार्गदर्शन करना था ताकि मानव जाति धरती पर एक साथ रहने और उसका सम्मान करने में सक्षम हो जाए, और ताकि मानवजाति उसके द्वारा मार्गदर्शन किए जाने के बाद धरती पर एक उचित मानव जीवन के सही रास्ते पर प्रवेश करने में सक्षम जाए। केवल तभी वह कार्य पूर्णतः सम्पन्न हुआ था जिसे मुख्यतः यहोवा के नाम के अधीन आयोजित किया गया था; अर्थात्, केवल तभी दुनिया का सृजन करने का यहोवा का कार्य पूरी तरह से सम्पन्न हुआ था। और इसलिए, चूँकि उसने मानवजाति का सृजन किया है, उसे पृथ्वी पर हजारों वर्षों तक मानवजाति के जीवन का मार्गदर्शन करना पड़ा था, ताकि मानव जाति उसके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन करने, और पृथ्वी पर एक उचित मानव जीवन की सभी गतिविधियों में हिस्सा ले पाने में सक्षम हो जाए। केवल तभी यहोवा का कार्य पूर्णतः सम्पन्न हुआ था। उसने मानवजाति के सृजन के बाद इस कार्य को आरंभ किया, और उसका कार्य याकूब के समय तक चलता रहा, जब याकूब के बारह पुत्र इस्राएल के बारह कबीले बन गए। उस समय के बाद, इस्राएल में हर कोई ऐसा जनसमूह बन गया, जो पृथ्वी पर आधिकारिक रूप से उसके द्वारा अगुआई किया जाता था, और इस्राएल पृथ्वी पर वह विशेष स्थान बन गया जहाँ उसने अपना कार्य किया। यहोवा ने इन लोगों को ऐसे लोगों का पहला समूह बनाया जिनके बीच उसने पृथ्वी पर अपना आधिकारिक कार्य किया, और इस्राएल की संपूर्ण भूमि को अपने कार्य आरंभिक स्थल बनाया। उसने और भी अधिक बड़े कार्य की शुरुआत के रूप में उनका उपयोग किया, ताकि पृथ्वी पर उससे उत्पन्न सभी लोग जान जाएँ कि कैसे उसका सम्मान करें और पृथ्वी पर रहें। और इसलिए, इस्राएलियों के कर्म अन्य जातियों द्वारा पालन किए जाने के लिए एक उदाहरण बन गए, और इस्राएल के लोगों के बीच जो कहा गया था वह अन्य जातियों द्वारा सुने जाने वाले वचन बन गए। क्योंकि उन्होंने ही सर्वप्रथम यहोवा की व्यवस्थाओं और आदेशों को प्राप्त किया था, और इसलिए भी वे इस बात को सबसे पहले जानते थे कि कैसे यहोवा के मार्गों का सम्मान करें। वे मानवीय पूर्वज थे जो यहोवा के मार्गों को जानते थे, और यहोवा द्वारा चयनित मानवजाति के प्रतिनिधि थे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ
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