23.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(4)

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(4)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

     मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि देहधारण का अर्थ यीशु के कार्य में पूर्ण नहीं हुआ था? क्योंकि वचन पूरी तरह से देहधारी नहीं हुआ? यीशु ने जो किया वह देह में परमेश्वर के कार्य को करने का केवल एक अंश ही था; उसने केवल छुटकारे का कार्य किया और मनुष्य को पूरी तरह से प्राप्त करने का कार्य नहीं किया। इसी कारण से परमेश्वर एक बार पुनः अंत के दिनों में देह बना। कार्य का यह चरण भी एक सामान्य देह में किया गया, एक सर्वथा सामान्य मानव द्वारा किया गया, जिसकी मानवता अंश मात्र भी सर्वोत्कृष्ट नहीं है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पूरी तरह से इंसान बन गया, और यही ऐसा व्यक्ति है जिसकी पहचान परमेश्वर की पहचान है, एक पूर्ण मानव, एक पूर्ण देह, जो कार्य कर रहा है।

22.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(3)

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(3)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      पहले देहधारी परमेश्वर ने देहधारण के कार्य को पूर्ण नहीं किया; उसने उस कार्य के पहले चरण को ही पूर्ण किया जिसे देह में होकर करना परमेश्वर के लिए आवश्यक था। इसलिए, देहधारण के कार्य को समाप्त करने के लिए, परमेश्वर एक बार पुनः देह में वापस आया, देह की समस्त सामान्यता और वास्तविकता में जीवित रहा, अर्थात्, पूरी सामान्य और साधारण देह में परमेश्वर के वचन को प्रकट किया, इस प्रकार उस कार्य का समापन किया जिसे उसने देह में अधूरा छोड़ दिया था।

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(2)

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(2)

      परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      जब यीशु अपना काम कर रहा था, तो उसके बारे में मनुष्य का ज्ञान तब भी अज्ञात और अस्पष्ट था। मनुष्य ने हमेशा यह विश्वास किया कि वह दाऊद का पुत्र है और उसके एक महान भविष्यद्वक्ता और उदार प्रभु होने की घोषणा की जिसने मनुष्य को पापों से छुटकारा दिया था। विश्वास के आधार पर मात्र उसके वस्त्र के छोर को छू कर ही कुछ लोग चंगे हो गए थे; अंधे देख सकते थे और यहाँ तक कि मृतक को जिलाया भी जा सकता था।

21.11.18

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(1)

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?(1)

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा" (इब्रानियों 9:28)।
"आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था" (युहन्ना 1:1)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
प्रथम देहधारण यीशु की देह के माध्यम से मनुष्य को पाप से छुटकारा देने के लिए था, अर्थात्, उसने मनुष्य को सलीब से बचाया, परन्तु भ्रष्ट शैतानी स्वभाव तब भी मनुष्य के भीतर रह गया था। दूसरा देहधारण अब और पापबलि के रूप में कार्य करने के लिए नहीं है परन्तु उन्हें पूरी तरह से बचाने के लिए है जिन्हें पाप से छुटकारा दिया गया था।

20.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(8)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

       देह में प्रगट परमेश्वर के कार्य को देह में अवश्य किया जाना चाहिए। यदि इसे सीधे तौर पर आत्मा के द्वारा किया जाता है तो उसके कोई प्रभाव नहीं होंगे। भले ही इसे आत्मा के द्वारा किया गया होता, फिर भी वह कार्य किसी बड़े महत्व का नहीं होता, और अन्ततः रज़ामन्द करनेवाला (मनाने वाला) नहीं होता। सभी जीवधारी जानना चाहते हैं कि सृष्टिकर्ता के कार्य का महत्व है या नहीं, और यह क्या दर्शाता है, और यह किस के लिए है, और परमेश्वर का कार्य अधिकार एवं बुद्धि से भरा हुआ है या नहीं, और यह अत्यंत मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण है या नहीं।

19.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(7)

          6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(7)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

         देह में परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण समूचे युग के उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, और मनुष्य के काम के समान किसी निश्चित समय अवधि का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। और इस प्रकार उसके अंतिम देहधारण के कार्य के अन्त का अभिप्राय यह नहीं है कि उसका कार्य पूर्ण समापन की ओर आ गया है, क्योंकि देह में उसका कार्य समूचे युग का प्रतिनिधित्व करता है, और केवल उसी समय अवधि का ही प्रतिनिधित्व नहीं करता है जिसमें वह देह में कार्य करता है। यह ठीक ऐसा है कि वह उस समय के दौरान जब वह देह में है समूचे युग के अपने कार्य को पूरा करता है, उसके पश्चात् यह सभी स्थानों में फैल जाता है।

18.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(6)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(6)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है


         परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण सारी मानवजाति के वास्ते है, और समूची मानवजाति की ओर निर्देशित है। यद्यपि यह देह में उसका कार्य है, फिर भी इसे अब भी सारी मानवजाति की ओर निर्देशित किया गया है; वह सारी मानवजाति का परमेश्वर है, वह सभी सृजे गए और न सृजे गए प्राणियों का परमेश्वर है। यद्यपि देह में उसका कार्य एक सीमित दायरे के भीतर होता है, और इस कार्य का विषय भी सीमित होता है, फिर भी हर बार जब वह अपना कार्य करने के लिए देह धारण करता है तो वह अपने कार्य का एक विषय चुनता है जो अत्यंत प्रतिनिधिक है; वह सामान्य एवं मामूली लोगों के एक समूह को नहीं चुनता है कि उन पर कार्य करे, किन्तु इसके बजाए अपने कार्य के विषय के रूप में लोगों के ऐसे समूह को चुनता है जो देह में उसके कार्य के प्रतिनिधि होने में सक्षम हैं।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...