12.7.18

"परमेश्वर में आस्था" (6) - परमेश्वर में सच्चे विश्वास का क्या अर्थ है?




"परमेश्वर में आस्था" (6) - परमेश्वर में सच्चे विश्वास का क्या अर्थ है?

बहुत से लोगों का मानना है कि परमेश्वर में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है, और प्रभु के लिए कष्ट उठाकर कार्य करना परमेश्वर में विश्वास करने की वास्तविकता है। इस धार्मिक संसार में कोई भी अच्छे प्रकार से यह नहीं समझ पाया कि परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने का अर्थ क्या है। "परमेश्वर पर विश्वास" का अर्थ, यह विश्वास करना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर पर विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे बढ़कर यह बात है कि परमेश्वर है, यह मानना परमेश्वर पर सचमुच विश्वास करना नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक प्रभाव के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का अर्थ इस विश्वास के आधार पर परमेश्वर के वचनों और कामों का अनुभव करना है कि परमेश्वर सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखता है। इस तरह से तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त हो जाओगे, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करोगे और परमेश्वर को जान जाओगे। केवल इस प्रकार की यात्रा के माध्यम से ही तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास करने वाला कहा जा सकता है। ""वचन देह में प्रकट होता है" से

11.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)




सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "चाहे देहधारी परमेश्वर बोले, कार्य करे, या चमत्कार प्रकट करे, वह अपने प्रबंधन के अंतर्गत महान कार्य कर रहा है, और इस प्रकार का कार्य उसके बदले मनुष्य नहीं कर सकता है। मनुष्य का कार्य केवल सृजन किए गए प्राणी के रूप में परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के किसी दिए गए चरण में सिर्फ़ अपना कर्तव्य करना है। इस प्रकार के प्रबंधन के बिना, अर्थात्‌, यदि देहधारी परमेश्वर की सेवकाई खो जाती है, तो सृजित प्राणी का कर्तव्य भी खो जायेगा। अपनी सेवकाई को करने में परमेश्वर का कार्य मनुष्य का प्रबंधन करना है, जबकि मनुष्य का कर्तव्य करना सृष्टा की माँगों को पूरा करने के लिए अपने स्वयं के दायित्वों का प्रदर्शन है और किसी भी तरह से किसी की सेवकाई करना नहीं माना जा सकता है। परमेश्वर, अर्थात्‌, पवित्रात्मा के अंतर्निहित सार के लिए, परमेश्वर का कार्य उसका प्रबंधन है, किन्तु एक सृजन किए गए प्राणी का बाह्य स्वरूप पहने हुए देहधारी परमेश्वर के लिए, उसका कार्य अपनी सेवकाई को पूरा करना है। वह जो कुछ भी कार्य करता है वह अपनी सेवकाई को करने के लिए करता है, और मनुष्य केवल उसके प्रबंधन के क्षेत्र के भीतर और उसकी अगुआई के अधीन ही अपना सर्वोत्तम कर सकता है।"

10.7.18

मौत के मुंह से



मौत के मुंह से



अठत्तर साल की बूढी लियू झेन, एक आम देहाती गृहिणी है।परमेश्वर में विश्वास करने के बाद से, उसे हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़ने, उनकी यशगान स्तुति करने और अक्सर अपने भाई-बहनों के साथ संगति करने में अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती … लेकिन हर अच्छी चीज़ अस्थाई होती है। उसे चीनी कम्युनिस्ट सरकार गिरफ्तार कर यातना देती है और एक भयंकर स्थिति में डाल देती है। पुलिस उसे तीन बार पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन ले जाती है और उसे चेतावनी देती है कि वह अब परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दे। वे उसकी निगरानी करते हैं और उसे डराने के लिए उसके घर पहुँच जाते हैं। चीनी कम्युनिस्ट सरकार के दबाव में आकर, उसका पति, बेटा और बहू भी परमेश्वर में उसके विश्वास का विरोध करते हैं और उस पर पाबंदी लगा देते हैं। इस पीड़ा के दौरान वह सच्चे मन से परमेश्वर में अपनी आस्था बनाए रखती है और उनसे याचना करती है।

9.7.18

परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 2)


परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 2)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चाहे देहधारी परमेश्वर बोले, कार्य करे, या चमत्कार प्रकट करे, वह अपने प्रबंधन के अंतर्गत महान कार्य कर रहा है, और इस प्रकार का कार्य उसके बदले मनुष्य नहीं कर सकता है। मनुष्य का कार्य केवल सृजन किए गए प्राणी के रूप में परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के किसी दिए गए चरण में सिर्फ़ अपना कर्तव्य करना है। इस प्रकार के प्रबंधन के बिना, अर्थात्‌, यदि देहधारी परमेश्वर की सेवकाई खो जाती है, तो सृजित प्राणी का कर्तव्य भी खो जायेगा।

4.7.18

परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है




परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है


परमेश्वर का स्वभाव प्रतापी है और क्रोध से भरा है।
वो मेमना नहीं है जो उसका कोई भी वध कर दे।
वो कठपुतली नहीं है जो हो जैसा चाहे नचा ले,
न वो है हवा जो कोई उसपर, हुक्म चला ले।
परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है।
परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है।
गर परमेश्वर के वजूद में सचमुच यकीं रखते हो,
तो जिसमें ख़ौफ़ हो उसका, तुम ऐसा दिल रखो।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "बीते समयों में, अनेक लोग मनुष्य की महत्वाकांक्षा और धारणाओं के साथ मनुष्य की आशाओं के लिए आगे बढ़े। अब इन मामलों पर चर्चा नहीं की जाएगी। कुंजी है अभ्यास का ऐसा ढंग खोजना जो तुम में से हर एक को परमेश्वर के सम्मुख एक सामान्य स्थिति बनाये रखने और धीरे-धीरे शैतान के प्रभाव की बेड़ियों को तोड़ डालने में सक्षम करे, ताकि तुम परमेश्वर को प्राप्त हो सको और पृथ्वी पर वैसे जियो जैसे परमेश्वर तुमसे चाहता है। केवल इसी से परमेश्वर की इच्छा पूरी हो सकती है।"

3.7.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास" (भाग दो)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास" (भाग दो)


मनुष्य के बीच परमेश्वर का कार्य मनुष्य से अवियोज्य है, क्योंकि मनुष्य इस कार्य का लक्ष्य है, और परमेश्वर के द्वारा रचा गया एकमात्र ऐसा प्राणी है जो परमेश्वर की गवाही दे सकता है। मनुष्य का जीवन और मनुष्य के समस्त क्रियाकलाप परमेश्वर से अवियोज्य हैं, और उन सब को परमेश्वर के हाथों के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, और यहाँ तक कि यह भी कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर से स्वाधीन होकर अस्तित्व में नहीं रह सकता है। कोई भी इसे नकार नहीं सकता है, क्योंकि यह एक तथ्य है। वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है मनुष्यजाति के लाभ के लिए है, और शैतान के षडयन्त्रों की ओर निर्देशित है।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...