परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यदि प्रत्येक युग में परमेश्वर का कार्य हमेशा एक ही होता है, और उसे हमेशा उसी नाम से बुलाया जाता है, तो मनुष्य उसे कैसे जान पाता? परमेश्वर को यहोवा अवश्य कहा जाना चाहिए, और यहोवा कहे जाने वाले किसी परमेश्वर के अलावा किसी अन्य नाम से कहा जाने वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर नहीं है। वरना परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है, और परमेश्वर को यीशु के सिवाय किसी भी अन्य नाम से नहीं बुलाया जा सकता है; यीशु के अलावा, यहोवा परमेश्वर नहीं है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी परमेश्वर नहीं है। मनुष्य का मानना है कि यह सत्य है कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, किन्तु परमेश्वर मनुष्य के साथ एक परमेश्वर है; उसे यीशु अवश्य कहा जाना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के साथ है। ऐसा करना सिद्धांत का पालन करना है, और एक दायरे में परमेश्वर को बाधित करना है। इसलिए, जो कार्य परमेश्वर हर युग में करता है, वह नाम जिससे उसे बुलाया जाता है, और वह छवि जिसे वह अपनाता है, और आज तक उसके कार्य का प्रत्येक चरण, एक भी विनियम का पालन नहीं करते हैं, और किसी भी बाध्यता के अधीन नहीं हैं। वह यहोवा है, किन्तु वह यीशु भी है, और साथ ही मसीहा, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी है। उसका कार्य धीरे-धीरे बदल सकता है, और उसके नाम में भी अनुरूपी परिवर्तन होते हैं। कोई भी अकेला नाम पूरी तरह से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, किन्तु वे सभी नाम जिनसे उसे बुलाया जाता है, उसका प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होते हैं, और प्रत्येक युग में उसके द्वारा किया गया कार्य उसके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-अंत के दिनों के मसीह के लिए गवाहियां-IV. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों और उसके नामों के बीच रहे संबंध के विषय में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए
अनुशंसित:1. विभिन्न युगों में परमेश्वर को अलग-अलग नामों से क्यों बुलाया जाता है? परमेश्वर के नामों के महत्व क्या हैं?(1)
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