परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
तुम्हें पता होना चाहिए कि मूल रूप से परमेश्वर का का कोई नाम नहीं था। उसने केवल एक, या दो या कई नाम धारण किए क्योंकि उसके पास करने के लिए काम था और उसे मानव जाति का प्रबंधन करना था। चाहे उसे किसी भी नाम से बुलाया जाए, क्या यह उसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से चुना नहीं जाता है? क्या इसे तय करने के लिए उसे तुम्हारी, एक प्राणी की, आवश्यकता है?
जिस नाम से परमेश्वर को बुलाया जाता है वह उसके अनुसार है जिसे मनुष्य समझ सकता है और मनुष्य की भाषा के अनुसार है, किन्तु इस नाम को मनुष्य द्वारा समस्त विशेषताओं के साथ सारगर्भित रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
जिस नाम से परमेश्वर को बुलाया जाता है वह उसके अनुसार है जिसे मनुष्य समझ सकता है और मनुष्य की भाषा के अनुसार है, किन्तु इस नाम को मनुष्य द्वारा समस्त विशेषताओं के साथ सारगर्भित रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
प्रत्येक युग में जिसमें परमेश्वर स्वयं अपना कार्य करता है, वह एक नाम का उपयोग करता है, जो उसके द्वारा किए गए कार्य की समस्त विशेषताओं को सारगर्भित रूप से व्यक्त करने के लिए युग के अनुकूल होता है। वह उस युग क अपने स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस विशेष नाम, एक नाम जो युग के महत्व से सम्पन्न है, का उपयोग करता है। परमेश्वर अपने स्वयं के स्वभाव को व्यक्त करने के लिए मनुष्य की भाषा का उपयोग करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-अंत के दिनों के मसीह के लिए गवाहियां-IV. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों और उसके नामों के बीच रहे संबंध के विषय में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए
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