1. मानव जाति के प्रबंधन से सम्बंधित परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के उद्देश्य को जानो।(4)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर का प्रबंधन इस प्रकार से है: मानवजाति को शैतान की अधीनता में देना-एक ऐसी मानवजाति जो नहीं जानती कि परमेश्वर क्या है, रचयिता क्या है, परमेश्वर की आराधना किस प्रकार की जानी है, और परमेश्वर के अधीन होना क्यों आवश्यक है-और शैतान की भ्रष्टता को उन्मुक्त लगाम देना। और फिर कदम दर कदम, परमेश्वर शैतान के हाथों से मनुष्य को बचाता है, जब तक कि मनुष्य पूरी तरह से परमेश्वर की आराधना न करे और शैतान को अस्वीकार न कर दे। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। यह सब कुछ एक मिथककथा लगती है; और यह सब कुछ हैरान कर देने वाला लगता है। लोगों को लगता है कि ये एक मिथक कथा है, और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें इसका भान नहीं है कि पिछले हज़ारों सालों में लोगों के साथ कितना कुछ हुआ है, और इस बात को तो वे बिल्कुल नहीं जानते कि इस ब्रह्मांड के विस्तार में अब तक कितनी कहानियां घट चुकी हैं। इसके अलावा, ऐसा इसलिए कि वे इस बात को नहीं समझ सकते कि भौतिक संसार के परे एक अधिक आश्चर्यजनक अधिक भययुक्त संसार का अस्तित्व है, परन्तु उनकी नश्वर आंखें देखने से उन्हें वंचित करती हैं। इंसान को वह अबोधगम्य लगती है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को मानवजाति के लिए परमेश्वर के द्वारा किए गए उद्धार के कार्य की महत्ता और परमेश्वर के प्रबंधकारणीय कार्य की महत्ता की समझ नहीं है, और वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर अंततः मनुष्य को कैसा बनते देखना चाहता है। क्या शैतान के दोष से रहित आदम और हव्वा के समान? नहीं! परमेश्वर का प्रबंधन लोगों के एक ऐसे समूह को प्राप्त करने के लिए है जो उसकी आराधना करे और उसके अधीन रहे। ये मानवजाति शैतान के द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी है, परन्तु अब शैतान को पिता के तौर पर नहीं देखती; वह शैतान के बुरे चेहरे को पहचानता है और उसे अस्वीकार करता है और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के लिये उसके सामने आता है। वह जानता है कि क्या बुरा है, और जो पवित्र है उसके विपरीत वह कैसा दिखता है, और वह परमेश्वर की महानता को पहचानता है और शैतान की दुष्टता को भी समझता है। इस प्रकार की मानवजाति अब शैतान के लिए कार्य नहीं करती है, या उसकी आराधना नहीं करती है, या शैतान को प्रतिष्ठित नहीं करती है। इसका कारण यह है कि यह एक ऐसे लोगों का समूह है जो वास्तव में परमेश्वर को प्राप्त हो गए हैं। यही परमेश्वर की मानवजाति के प्रबंधन की महत्ता है। …
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परमेश्वर का प्रेम और दया उसके प्रबंधकारणीय कार्य के हर ब्यौरे में व्याप्त होती है और इससे निरपेक्ष कि लोग परमेश्वर की भली मंशा को समझ पा रहे हैं या नहीं, वह अभी भी अथक रूप से अपने कार्य में लगा हुआ है जो वह पूरा करना चाहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर के प्रबंधन को लोग कितना समझ रहे हैं, परमेश्वर जो कार्य कर रहा है, उसके लाभ और सहायता को हर व्यक्ति भलीभाँति समझ सकता है। भले ही आज तुम परमेश्वर के द्वारा प्रदत्त प्रेम या जीवन को महसूस नहीं कर पा रहे हो, परन्तु जब तक तुम परमेश्वर को न छोड़ो, और सत्य को खोजने के अपने इरादों को न छोड़ो, तो एक न एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब परमेश्वर की मुस्कान तुम पर प्रगट होगी। क्योंकि परमेश्वर के प्रबंधकारणीय कार्य का लक्ष्य शैतान के चंगुल में फंसी हुई मानवजाति को उबारना है, न कि मानवजाति को छोड़ना है जो शैतान के द्वारा भ्रष्ट हो चुकी है और परमेश्वर के विरूद्ध खड़ी हुई है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" से
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