वुझी लिनयी शहर, शैंडॉन्ग प्रान्त
2006 की बसंत में, मुझसे मेरा अगुआ का पद छीन लिया गया था और मैं जहाँ से आई थी मुझे वापस वहाँ वापिस भेज दिया गया क्योंकि मुझे दूसरों का बहुत ज्यादा "चाटुकार" माना गया था। जब मैं पहली बार वापस गया, तो मैं संताप और वेदना की संकट की घड़ी में पड़ गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि सालों तक की अगुआई के बाद, "चाटुकार" होने के कारण चीज़ें बिगड़ जाएँगी। मेरे लिए यह अंत था, मैं सोचता था, कि मेरे सभी परिचितों को मेरी असफलता के बारे में पता चल जाएगा और मैं कलीसिया में एक बुरा उदाहरण बनकर रह जाऊँगा। इन सबके बाद मैं दूसरों का सामना कैसे कर सकूँगा? इस बारे में मैं जितना ज्यादा सोचता, मैं उतना ही ज्यादा नकारात्मक हो जाता, और अंतत: मैंने सत्य की खोज जारी रखने की निष्ठा खो दी।