उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को उपदेशों की एक श्रृंखला कही, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे माँगें, दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करें इत्यादि। जो कार्य उसने किया वह अनुग्रह के युग का था, और उन्होंने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया कैसे अभ्यास करें।
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20.4.19
1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(2)
उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को उपदेशों की एक श्रृंखला कही, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे माँगें, दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करें इत्यादि। जो कार्य उसने किया वह अनुग्रह के युग का था, और उन्होंने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया कैसे अभ्यास करें।
19.4.19
1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?(1)
18.4.19
4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(4)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे ज्यादा और क्या, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के इस सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं?
फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे ज्यादा और क्या, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के इस सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं?
17.4.19
4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(3)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
16.4.19
4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(2)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यदि मनुष्य हमेशा मुझे यीशु मसीह कहकर सम्बोधित करता है, किन्तु यह नहीं जानता है कि मैंने इन अंतिम दिनों के दौरान एक नए युग की शुरूआत कर दी है और एक नया साहसिक कार्य प्रारम्भ कर दिया है, और यदि मनुष्य हमेशा सनकियों की तरह उद्धारकर्त्ता यीशु के आगमन का इन्तज़ार करता रहता है, तो मैं कहूँगा कि ऐसे लोग उसके समान हैं जो मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं।
15.4.19
4. परमेश्वर के नाम के महत्व को नहीं जानने और परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार न करने की मानवीय समस्या की प्रकृति क्या है?(1)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
समय की प्रत्येक अवधि में, परमेश्वर नया कार्य आरम्भ करेगा, और प्रत्येक अवधि में, मनुष्य के बीच में एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सच्चाईयों में ही बना रहता है कि "यहोवा ही परमेश्वर है" और "यीशु ही मसीहा है," जो ऐसी सच्चाईयां हैं जो केवल एक अकेले युग पर ही लागू होती हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में असमर्थ रहेगा। इसकी परवाह किए बगैर कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है, मनुष्य जरा सा भी सन्देह किए बिना अनुसरण करता है, और वह करीब से अनुसरण करता है।
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