किन शुटिंग लिनयी शहर, शैंडॉन्ग प्रांत
कुछ समय से, यद्यपि मैंने परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना बंद नहीं किया था, मैं कभी भी प्रकाश को महसूस नहीं करती थी। मैं ने इसके लिए परमेश्वर से प्रार्थना की थी लेकिन, उसके बाद भी, मुझे प्रबुद्ध नहीं किया गया था। इसलिए मैं सोचती थी कि, "मुझे जो खाना और पीना चाहिए था मैंने उसे खाया और पिया है और परमेश्वर मुझे प्रबुद्ध नहीं कर रहा है। ऐसा कुछ नहीं हैं जो मैं कर सकती हूँ, और मेरे पास परमेश्वर के वचन हासिल करने की योग्यता नहीं है। परमेश्वर द्वारा हर मनुष्य को प्रबुद्ध करने का समय एक होता है, इसलिए इसके लिए शीघ्रता करने की कोशिश करने का कोई उपयोग नहीं है।" इसके बाद, मैं "धैर्यपूर्वक" परमेश्वर की प्रबुद्धता का इंतजार करते हुए, नियम का पालन करती थी और किसी चिंता के बिना परमेश्वर के वचनों के वचनों को खाती और पीती थी।
फिर एक दिन, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े: "तुम्हारा दिल जब परमेश्वर के सामने शांत रहेगा, केवल तभी सत्य की तुम्हारी खोज और तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तनों का फल प्राप्त होगा। तुम परमेश्वर के सामने बोझ से दबे हुए आते हो और तुम हमेशा महसूस करते हो कि तुम्हारे जीवन में बहुत कमियाँ हैं, ऐसे कई सत्य हैं जिन्हें तुमको जानना है, ऐसी कई वास्तविकताएं हैं जो तुमको अनुभव करने की आवश्यकता है, और यह कि तुमको अपनी हर चिंता परमेश्वर की इच्छा पर छोड़ देनी चाहिए—ये बातें हमेशा तुम्हारे दिमाग़ में चलती रहती हैं, और ऐसा लगता है जैसे ये बातें तुम पर इतना दबाव डाल रही हैं कि तुम्हारे लिए साँस लेना मुश्किल हो गया है, और यही वजह है कि तुम्हारा दिल भारी-भारी महसूस करता है (लेकिन एक नकारात्मक तरह से नहीं)। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता को स्वीकार करने और परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित होने के योग्य हैं। यह उनके बोझ की वजह से है, क्योंकि उनका दिल भारी-भारी महसूस करता है, और, कहा जा सकता है कि परमेश्वर के सामने जो कीमत वे अदा कर चुके हैं और जिस पीड़ा से वे गुज़र चुके हैं उसके कारण वे उसकी प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करते हैं, क्योंकि परमेश्वर किसी का विशेष रूप से सत्कार नहीं करता है। लोगों के प्रति अपने व्यवहार में वह हमेशा निष्पक्ष रहता है, लेकिन वह लोगों को जो प्रदान करता है वह उसे मनमाने ढंग से और बिना किसी शर्त के नहीं देता है। यह उसके धर्मी स्वभाव का एक पहलू है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" से)। परमेश्वर के इन वचनों पर विचार करके, मेरी समझ में आ गया कि: परमेश्वर एक धार्मिक परमेश्वर है। वह मनुष्य के लिए अपनी व्यवस्था में कभी भी मनमाना नहीं होता है, और मनुष्य को बिना शर्त के नहीं देता है। लोगों को परमेश्वर की प्रबुद्धता और रोशनी हासिल करने के लिए, परमेश्वर के समक्ष अपने दिलों को शांत अवश्य करना चाहिए और ऐसा दिल रखना चाहिए जो परमेश्वर के वचनों के लिए तरसता और उसकी खोज करता हो। उन्हें अवश्य अपनी खुद की जिंदगियों की ज़िम्मेदारी वहन करनी चाहिए और परमेश्वर के वचनों के अंदर अपनी खुद की कमियों को खोजना चाहिए। अपनी ज़िम्मेदारी वहन करते हुए, उन्हें उसकी इच्छा का पूरा ध्यान रखने और सत्य में और अधिक गहरा जाने के लिए परमेश्वर के वचनों को अवश्य उद्देश्यपूर्ण ढंग से खाना और पीना चाहिए। परमेश्वर के साथ कार्य करने के लिए व्यावहारिक रूप से ऐसी कीमत चुका कर ही, व्यक्ति परमेश्वर की प्रबुद्धता हासिल कर सकता है। बीती बातों पर विचार करने पर, मैं कोई ज़िम्मेदारी वहन नहीं कर रही थी और न ही परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के लिए बिल्कुल भी कोई लालायित दिल रख रही थी। हर बार जब मैं परमेश्वर के वचन की किताब उठाती थी, तो मैं जल्दी-जल्दी पन्ने पलटा करती और मैं देखती कि मैंने इस अंश को पढ़ा था और उस अंश को पढ़ा था, और सोचती थी मुझे प्रत्येक अंश के बारे में मोटी-मोटी जानकारी ही थी। फिर मैं कोई पुराना अंश खोजा करती, उसे सरसरी तौर पर पढ़ती, और बस मेरा काम पूरा हो जाता था। जब मैं परमेश्वर के वचन खाती और पीती थी, तो केवल कुछ नियमों और अभ्यासों को बनाए रखने पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, मेरे लिए उन वचनों के मात्र शाब्दिक अर्थ को समझना ही पर्याप्त होता था। मैं निश्चित रूप से उस सत्य को अधिक नहीं देखती थी जिसमें प्रवेश करने की मुझे जरूरत थी, न ही मैं परमेश्वर के दिल को संतुष्ट कर रही थी। मैं अपनी खुद की जिंदगी के लिए बिल्कुल भी ज़िम्मेदारी वहन नहीं कर रही थी, न ही मैं खुद को पर्याप्त सत्य से सुसज्जित नहीं करने के बारे में चिंतित थी; मैं बेपरवाही के साथ परमेश्वर के वचनों का अपना खाना और पीना बस सँभाल रही थी। परमेश्वर के वचनों के प्रति ऐसी लापरवाह प्रवृत्ति के साथ, मैंने उसकी प्रबुद्धता और रोशनी को कैसे हासिल कर सकती थी? मैं वाकई परमेश्वर के साथ कार्य नहीं कर रही थी, और बिना देखे परमेश्वर की प्रबुद्धता का इंतजार करने के लिए एक बहाने के रूप में "परमेश्वर द्वारा हर मनुष्य को प्रबुद्ध करने का समय होता है" का उपयोग कर रही थी। मैं वाकई कितनी अज्ञानी हो रही थी! केवल अब मैं इसे जानती हूँ, यद्यपि परमेश्वर द्वारा हर मनुष्य को प्रबुद्ध करने का समय होता है, यह काफी सत्य है, मनुष्य पर पवित्र आत्मा के कार्य के पीछे एक सिद्धांत होता है। परमेश्वर के साथ सकारात्मक रूप से और सक्रिय रूप से कार्य करने में समर्थ होने के लिए मनुष्य में खुद भी लालसा, खोजने वाला ह्रदय अवश्य होना चाहिए। केवल तभी पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य कर सकता है और परमेश्वर की इच्छा की मनुष्य की समझ को प्रबुद्ध और प्रकाशित कर सकता है, जिसके कारण वे उसके वचनों के सत्य को समझ पाते हैं।
हे परमेश्वर! मैं तेरे द्वारा ठीक समय पर दी गई प्रबुद्धता के लिए तुझे धन्यवाद देती हूँ जिसने मुझे मेरे खुद के अनुभव में भटकाव को पहचानने में मदद की। अब मैं एक लालला वाला, खोजी दिल रखने, तेरे वचनों को खाने और पीने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी को वहन करने, तेरे वचनों के माध्यम से प्राप्त प्रबुद्धता की आगे खोज करने, खुद को सत्य में और अधिक गहराई से प्रवेश करवाने, और अपनी जिंदगी को अधिक से अधिक विकसित करने के लिए तेरे साथ सकारात्मक और सक्रिय रूप से काम करने के लिए पीछे लौटना चाहती हूँ।
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-मसीह के न्याय के अनुभव की गवाहियाँ
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