6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(2)
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)
भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है
मनुष्य परमेश्वर में अपने निश्चिन्त विश्वास के द्वारा परेशान नहीं होता है, और जैसा उसे भाता है परमेश्वर में विश्वास रखता है। यह मनुष्य का एक "अधिकार एवं आज़ादी" है, जिसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, क्योंकि मनुष्य अपने स्वयं के परमेश्वर में विश्वास करता है तथा किसी और के परमेश्वर पर नहीं; यह उसकी अपनी निजी सम्पत्ति है, और लगभग हर कोई इस तरह की निजी सम्पत्ति रखता है। मनुष्य इस सम्पत्ति को एक बहुमूल्य ख़ज़ाने के रूप में मानता है, किन्तु परमेश्वर के लिए इससे अधिक निम्न या निकम्मी चीज़ और कोई नहीं है, क्योंकि मनुष्य की इस निजी सम्पत्ति की तुलना में परमेश्वर के विरोध का इससे और अधिक स्पष्ट संकेत नहीं है।