राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, और उसकी बुद्धि और आश्चर्य को जान सके। उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके।वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को, मनुष्य के मूल तत्व और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए, यह जाना जा सकता है। वचन के युग में परमेश्वर जिन सभी कार्यों को करना चाहता है, वे वचन के द्वारा संपन्न होते हैं। वचन के द्वारा ही मनुष्य की असलियत का पता चलता है, उसे नष्ट किया जाता है, और परखा जाता है। मनुष्य ने वचन देखा है, सुना है, और वचन के अस्तित्व को जाना है। जिसके परिणाम स्वरूप वह परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, मनुष्य परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने और उसकी बुद्धि पर, साथ ही साथ मनुष्यों के लिये परमेश्वर के हृदय के प्रेम और मनुष्यों का उद्धार करने की उसकी अभिलाषा पर विश्वास करता है। यद्यपि 'वचन' शब्द सरल और साधारण है, देहधारी परमेश्वर के मुख से निकला वचन संपूर्ण ब्रह्माण्ड को कंपाता है; और उसका वचन मनुष्य के हृदय को रूपांतरित करता है, मनुष्य के सभी विचारों और पुराने स्वभाव, और समस्त संसार के पुराने स्वरूप में परिवर्तन लाता है। युगों-युगों से केवल आज के दिन का परमेश्वर ही इस प्रकार से कार्य करता है, और केवल वही इस प्रकार से बोलता और मनुष्य का उद्धार करता है। इसके बाद मनुष्य वचन के मार्गदर्शन में, उसकी चरवाही में, और उससे प्राप्त आपूर्ति में जीवन जीता है। वह वचन के संसार में जीता है, परमेश्वर के वचन के कोप और आशीषों में जीता है, और उससे भी अधिक वह परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के अधीन जीता है। ये वचन और यह कार्य सब कुछ मनुष्य के उद्धार, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने, और पुरानी सृष्टि के संसार के मूल रूप रंग को बदलने के लिये है। परमेश्वर ने संसार की सृष्टि वचन से की, समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य की अगुवाई वचन के द्वारा करता है, उन्हें वचन के द्वारा जीतता और उद्धार करता है। अंत में, वह इसी वचन के द्वारा समस्त प्राचीन जगत का अंत कर देगा। केवल तब उसके प्रबंधन की योजना पूरी होगी। राज्य के युग के शुरू से अंत तक, परमेश्वर अपना काम करने और अपने कामों का परिणाम प्राप्त करने के लिये वचन का उपयोग करता है। वह अद्भुत काम या चमत्कार नहीं करता, वह अपने कार्य को केवल वचन के द्वारा संपन्न करता है। वचन के कारण मनुष्य पोषण और आपूर्ति पाता है। वचन के कारण मनुष्य ज्ञान और वास्तविक अनुभव प्राप्त करता है। वचन के युग में मनुष्य ने वास्तव में अति विशेष आशीषें पाई हैं। मनुष्य को शरीर में कोई कष्ट नहीं होता और वह परमेश्वर के वचन की भरपूर आपूर्ति का आनंद उठाता है; उन्हें प्रयास करने या यात्रा करने की आवश्यकता नहीं, और बड़ी आसानी से वे परमेश्वर के मुख को निहारते हैं, उसे व्यक्तिगत रूप में बातें करते हुए सुनते हैं, उसके द्वारा आपूर्ति पाते हैं; और उसे व्यक्तिगत रूप में उसका काम करते हुए देखते हैं। बीते दिनों में मनुष्य को इन सब बातों का आनंद प्राप्त नहीं था और वे इन आशीषों को कभी प्राप्त नहीं कर सकते थे।
परमेश्वर ने निश्चय ही मनुष्यों को पूर्ण करने का निर्णय कर लिया है। वह चाहे किसी भी दृष्टिकोण से यह कहता है, सब बातें इन लोगों को पूर्ण बनाने के लिये हैं। आत्मा के दृष्टिकोण से कहे गये वचन मनुष्यों के समझने में कठिन होते हैं, और मनुष्यों को उन पर अमल करने का मार्ग नहीं मिलता, क्योंकि मनुष्य की ग्रहण करने की क्षमता सीमित है। परमेश्वर के कार्य के विभिन्न प्रभाव होते हैं, और उसके कार्य के प्रत्येक चरण का एक उद्देश्य है। साथ ही मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिये उसे अलग-अलग दृष्टिकोण से बात करनी होगा। यदि वह केवल पवित्रात्मा के ही दृष्टिकोण से बातचीत करे, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा नहीं हो सकता है। उसके बात करने के ढंग से तुम जान सकते हो कि वह इस जनसमूह के लोगों को पूर्ण करने के लिये दृढ़ संकल्पित है। यदि तुम परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने की इच्छा रखते हो, तो तुम्हें पहला कदम क्या लेना चाहिये? सबसे पहले तुम्हें परमेश्वर के काम के बारे में जानना चाहिये। क्योंकि नये-नये साधनों का उपयोग किया जा रहा है, एक युग एक दूसरे युग में बदल गया है, परमेश्वर जिन साधनों के द्वारा काम करता है वे भी बदल गये हैं, और परमेश्वर जैसे बोलता है, उसमें भी बदलाव आया है। अब न केवल परमेश्वर के कार्य के साधन बदले हैं, साथ ही साथ युग भी बदल गया है। पूर्व में यह राज्य का युग था, इसमें जो कार्य था वह परमेश्वर से प्रेम करना था। अब, यह सहस्राब्दिक राज्य का युग है—वचन का युग—अर्थात वह युग जिसमें परमेश्वर मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए बहुत तरीकों से बोलता है, और मनुष्य को आपूर्ति करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से बोलता है। जैसे-जैसे समय सहस्राब्दिक राज्य के युग में बदला, परमेश्वर ने मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिये वचन का उपयोग करना आरंभ कर दिया, मनुष्यों को जीवन की वास्तविकता में प्रवेश करने योग्य बनाने लगा, और सही मार्ग पर उनकी अगुवाई करने लगा। मनुष्यों ने परमेश्वर के कार्य के बहुत से चरणों का अनुभव किया है और यह देखा है कि परमेश्वर का कार्य बिना बदले नहीं रहता। बल्कि यह कार्य लगातार बढ़ता और गहरा होता जाता है। इतने लंबे समय तक अनुभव करने के बाद, परमेश्वर का कार्य बदला है, और बार-बार बदला है, परंतु परिवर्तन चाहे जो भी हो, वह मनुष्यों में कार्य करने के परमेश्वर के उद्देश्य से अलग नहीं हुआ। यहां तक कि दस हजार परिवर्तनों के बाद भी उसका मूल उद्देश्य नहीं बदला और वह सत्य या जीवन से कभी अलग नहीं हुआ। जिन साधनों से काम किया जाता है, उनसे भी केवल कार्य के प्रारूप और बोलने के तरीके या दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है, उसके कार्य के केन्द्रीय उद्देश्य में परिवर्तन नहीं आया है। बोलने के स्वर और कार्य के माध्यम या साधनों में परिवर्तन का उद्देश्य कार्य में प्रभावशीलता लाना है। आवाज़ के स्तर पर परिवर्तन का अर्थ कार्य के उद्देश्य या सिद्धांत में परिवर्तन करना नहीं है। परमेश्वर में विश्वास करने में मनुष्य का मूल उद्देश्य जीवन खोजना है। यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो परंतु जीवन या सत्य या परमेश्वर के ज्ञान की खोज नहीं करते, तब परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास नहीं है! क्या यह यथार्थवादी है कि तुम राज्य में राजा बनने के लिये प्रवेश करना चाहते हो? जीवन खोजने के द्वारा परमेश्वर के लिये सच्चे प्रेम को प्राप्त करना ही वास्तविकता है; सत्य का पीछा करना और सत्य पर अमल करना सब वास्तविकता है। उसके वचनों को पढ़ते समय परमेश्वर के वचनों का अनुभव करो; ऐसा करने पर तुम वास्तविक अनुभव के द्वारा परमेश्वर के ज्ञान को प्राप्त करोगे। यही वास्तव में सच्चा अनुसरण है।
सहस्राब्दिक राज्य के युग में क्या तुमने इस नये युग में प्रवेश किया है, यह इस बात से तय होगा कि क्या तुमने वास्तव में परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश किया है या नहीं, और उसके वचन तुम्हारे जीवन में वास्तविकता बन चुके हैं या नहीं। परमेश्वर का वचन सभी को बताया गया है, ताकि सभी लोग अंत में, वचन के संसार में जीएँ और परमेश्वर का वचन प्रत्येक व्यक्ति को भीतर से प्रबुद्ध और रोशन कर देगा। यदि इस कालखण्ड के दौरान, तुम परमेश्वर के वचन को पढ़ने में जल्दबाज और लापरवाह हो, और उसके वचन में तुम्हारी रुचि नहीं है, यह दर्शाता है कि तुम्हारी स्थिति में कहीं कुछ गड़बड़ है। यदि तुम वचन के युग में प्रवेश करने में असमर्थ हो, तो पवित्र आत्मा तुम में कार्य नहीं करता है; यदि तुम इस युग में प्रवेश कर चुके हो तो वह तुम में अपना काम करेगा। तुम इस समय क्या कर सकते हो, जबकि वचन के युग का आरंभ हुआ है, ताकि तुम पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सको? इस युग में परमेश्वर इसे तुम्हारे बीच वास्तविकता बनाएगा कि प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के वचन को जीयेगा, और सत्य पर अमल करने योग्य बनेगा, और ईमानदारीपूर्वक परमेश्वर से प्रेम करेगा; कि सभी लोग परमेश्वर के वचन को नींव के रूप में और उनकी वास्तविकता के रूप में ग्रहण करें, और उनके हृदयों में परमेश्वर के प्रति आदर हो, और परमेश्वर के वचन पर अमल करने के द्वारा मनुष्य तब परमेश्वर के साथ मिलकर राज्य करे। परमेश्वर अपने इस कार्य को संपन्न करेगा। क्या तुम परमेश्वर के वचन को पढ़े बिना रह सकते हो? अब, बहुत से लोग हैं, जो महसूस करते हैं कि वे एक दिन या दो दिन भी परमेश्वर के वचन को बिना पढ़े नहीं रह सकते। उन्हें परमेश्वर का वचन प्रतिदिन अवश्य पढ़ना चाहिये, और यदि समय न मिले तो वचन को सुनना ही काफी है। यही भाव मनुष्य को पवित्र आत्मा की ओर से मिलती है। और इस प्रकार वो मनुष्य को चालित करता है। अर्थात पवित्र आत्मा वचन के द्वारा मनुष्य को नियंत्रित करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश करे। यदि परमेश्वर के वचन को खाए-पीए बिना बस एक ही दिन में तुम्हें अंधकार और प्यास का अनुभव हो, और तम्हें यह अस्वीकार्य लगता है, तब ये बातें दर्शाती हैं कि पवित्र आत्मा तुम्हें प्रेरित कर रहा है और वह तुमसे अलग नहीं हुआ है। तब तुम वह हो जो इस धारा में हो। किंतु यदि परमेश्वर के वचन को खाए-पीए बिना एक या दो दिन के बाद, तुम में कोई अवधारणा न हो या तुम्हें भूख-प्यास न लगे, और तुम द्रवित महसूस न करो, तो यह दर्शाता है कि पवित्र आत्मा तुम से दूर जा चुका है। इसका अर्थ है कि तुम्हारी भीतरी दशा सही नहीं है; तुमने वचन के युग में प्रवेश नहीं किया है, और तुम वह हो जो पीछे छूट गये हो। परमेश्वर मनुष्यों को नियंत्रित करने के लिये वचन का उपयोग करता है; तुम जब वचन को खाते-पीते हो, तुम्हें अच्छा महसूस होता है, यदि अच्छा महसूस नहीं होता, तब तुम्हारे पास कोई मार्ग नहीं है। परमेश्वर का वचन मनुष्यों का भोजन और उन्हें संचालित करने वाली शक्ति बन जाता है। बाइबिल में लिखा है, "मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं परन्तु हर एक वचन से जीवित रहेगा जो परमेश्वर के मुख से निकलता है" यही वह कार्य है जो परमेश्वर इस दिन में संपन्न करेगा। वह तुम लोगों को इस सत्य का अनुभव करायेगा। यह कैसे होता था कि प्राचीन दिनों में लोग परमेश्वर का वचन बिना पढ़े बहुत दिन रहते थे, पर खाते-पीते और काम करते थे? और अब ऐसा क्यों नहीं होता? इस युग में परमेश्वर सब मनुष्यों को नियंत्रित करने के लिए मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। परमेश्वर के वचन के द्वारा मनुष्य परखा, और पूर्ण बनाया जाता है, और तब अंत में राज्य में ले जाया जाता है। केवल परमेश्वर का वचन मनुष्यों को जीवन दे सकता है, और केवल परमेश्वर का वचन ही मनुष्यों को ज्योति और अमल करने का मार्ग दे सकता है विशेषकर राज्य के युग में। जब तब तुम परमेश्वर के वचन को खाते-पीते हो, और परमेश्वर के वचन की वास्तविकता को नहीं छोड़ते, परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाने का कार्य कर पाएगा।
जीवन की खोज करते हुये कोई सफल होने के लिये जल्दबाजी नहीं कर सकता, जीवन में उन्नति या विकास एक या दो दिन में नहीं आता। परमेश्वर का कार्य सामान्य और व्यवहारिक है, और इसे एक आवश्यक प्रक्रिया से गुजरना होगा। यीशु के देहधारण करने के बाद क्रूस पर अपने कार्य को समाप्त करने में यीशु को 33.5 वर्ष लगे, मनुष्य के जीवन की तो बात ही न करो। एक सामान्य व्यक्ति के लिये परमेश्वर को प्रकट करना आसान काम नहीं है। और यह विशेष रूप से बड़े लाल अजगर के देशवासियों के लिये और भी कठिन है। उनकी क्षमता कम है, और उन्हें लंबे समय तक परमेश्वर के वचन और कार्य की आवश्यकता है। इसलिये परिणाम पाने के लिये जल्दबाजी न करो। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिये तुम्हें पहले से ही सक्रिय होना होगा और परमेश्वर के वचनों पर अधिक से अधिक परिश्रम करना होगा। उसके वचनों को पढ़ने के बाद, तुम्हें इस योग्य हो जाना चाहिये कि तुम वास्तव में उन पर अमल करो,और परमेश्वर के वचनों में तब तुम्हें ज्ञान, अंर्तदृष्टि, परख और बुद्धि प्राप्त होगी। और इनके द्वारा तुम समझ भी नहीं पाओगे परंतु तुम बदलते जाओगे। यदि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, उसके वचनों को पढ़ने को तुम सिद्धांत बना लो, उसे जानने लगो, अनुभव करने लगो, अमल में लाने लगो, तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उन्नति करने लगोगे। कुछ कहते हैं, की वे परमेश्वर का वचन पढ़ने के बाद भी उस पर अमल नहीं कर पाते! तुम किस जल्दबाजी में हो? जब तुम एक निश्चित कद तक पहुंच जाते हो, तुम परमेश्वर के वचन पर अमल करने योग्य बन जाओगे। क्या चार या पांच वर्ष का बालक कहेगा कि वह अपने माता-पिता का सहयोग या आदर करने में असमर्थ है? तुम्हें अब जान लेना चाहिये कि तुम्हारा कद कितना है, तुम जिन पर अमल कर सकते हो, अमल करो, और परमेश्वर के प्रबंधन को बिगाड़ने वाले न बनो। सरल रूप में कहें तो केवल परमेश्वर के वचनों को खाओ-पीओ और आगे बढ़ते हुए उन्हें अपना सिद्धांत बना लो। इस बारे में चिन्ता न करो कि परमेश्वर तुम्हें पूर्ण कर सकता है या नहीं। अभी इस विषय में सोच-विचार न करो। केवल परमेश्वर के वचनों का खान-पान करो, जब वह तुम्हारे सामने आता है, और यह बात निश्चित है कि परमेश्वर तुम्हें अवश्य पूरा करेगा। हालांकि, परमेश्वर के वचन को खाने-पीने का एक नियम है। आंखें मूंद करके यह न करो। बल्कि उन शब्दों को खोजो, जिन्हें तुम्हें जानना चाहिये। अर्थात वे जिनका संबंध दर्शन से है। दूसरा एक पहलू जिसे खोजना चाहिये, वह है उन वचनों पर वास्तव में अमल करना, अर्थात वे बातें जिन में तुम्हें प्रवेश करना है, और करना चाहिये। एक पहलू ज्ञान का है और दूसरा उसमें प्रवेश करने का है। जब तुम इन दोनों को पा लेते हो, अर्थात जब तुम समझ लेते हो कि तुम्हें क्या जानना चाहिये और किस बात पर अमल करना चाहिए, तब तुम सीख लेते हो कि परमेश्वर के वचन से कैसे खाया और पिया जाता है।
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