बहन मोमो हेफि शहर, एन्हुई प्रान्त
परमेश्वर पर विश्वास करने से पहले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मैं क्या करती थी, मैं कभी पीछे रहना नहीं चाहती थी। मैं किसी भी कठिनाई को स्वीकार करने के लिए तैयार थी जब तक इसका आशय यह था कि मैं हर किसी से ऊपर उठ सकती थी। परमेश्वर को स्वीकार करने के पश्चात्, मेरी मनोवृत्ति वैसी ही बनी रही, क्योंकि मैं दृढ़ता से इस कहावत पर विश्वास करती थी, "कोई दर्द नहीं, तो कोई लाभ नहीं," और मैं ने अपनी मनोवृत्ति (रवैया) को अपनी प्रेरणा के एक प्रमाण के रूप में देखा था। जब परमेश्वर ने सत्य को मुझ पर प्रकट किया, तो अन्ततः मैं ने एहसास किया कि मैं शैतान के जूए के अधीन, एवं इसके प्रभुत्व के अधीन जी रही थी।
बहुत पहले की बात नहीं है, कलीसिया ने अगुवेपन के पद में सेवा करने के लिए उस बहन को बाहर भेजने की योजनाएं बनाई जिसके साथ मैं ने भागीदारी की थी। उस समाचार को सुनकर, मेरा दिल बैठ गया। हम दोनों उस समय तक अगुवेपन की भूमिकाओं में सेवा किया करते थे जब तक हमें संपादकों के रूप में फिर से नियुक्त नहीं कर दिया गया। अब मेरी बहन अगुवेपन के पद पर लौटेगी और विकास की असीमित सामर्थ के साथ परमेश्वर की सेवा करेगी, किन्तु मैं अभी भी किसी मेज से चिपकी रहूंगी, और धुंधलेपन (गुमनामी) में अपने कर्तव्यों को निभाऊंगी। उसमें भविष्य क्या होगा? पुनर्विचार करने पर, मुझे उस पुरानी कहावत का स्मरण कराया गया, "सफलता के लिये लाखों विभिन्न मार्ग हैं।" जब तक मैं अपने कर्तव्यों को उचित रीति से निभाती रहूँ, मैं भी सफल हो सकती थी। मुझे बस सत्य के अनुसरण की अपनी कोशिशों को फिर से दुगुना करने की आवश्यकता थी। यदि मैं सन्देशों का संपादन करने पर ध्यान केन्द्रित करती ताकि वे बेहतर ढंग से सत्य का संवाद करते, तो शायद किसी दिन अगुवे देखते कि मैं सत्य को समझ गई थी। तब वे मुझे पदोन्नति देते और मेरा भविष्य समान रूप से उज्जवल होता। इस एहसास के बाद, एक नवीनीकृत दृढ़ निश्चय के समर्थन में धुंधले बादल पीछे हटने शुरू हो गए। मैं ने अपने आपको अपने काम में झोंक दिया, और जब मैं व्यस्त नहीं होती थी तब मैं परमेश्वर के वचन को खाती और पीती थी, और एक पल के लिए भी ढिलाई बरतने की हिम्मत नहीं करती थी।
एक दिन, मैं ने जीवन में प्रवेश के ऊपर सन्देशों एवं संगति में निम्नलिखित अंश को देखा: "हर एक चीज़ जो तुझे परमेश्वर का अनुसरण करने से और सत्य की खोज करने से रोकती है वह शैतान के बन्धनों में से एक है। यदि तू शैतान के सिर्फ एक बन्धन से ही बांधा गया है, तो तू अपने जीवन को उसकी प्रभुता के अधीन बिता रहा है।" इसे सुनने के बाद, मैं अपने आप से यह पूछने से रोक नहीं सकी, "मैं शैतान के किस बन्धन के अधीन जी रही हूँ? उसका वह कौन सा ज़हर है जो सत्य के विषय में मेरे अनुसरण को बाधित कर रहा है?" जब मैं ने खामोशी से इस प्रश्न पर विचार करने की कोशिश की, तो मुझे अपनी हाल की स्थिति का स्मरण कराया गया। जब मेरी बहन को उसके नए पद के लिए बाहर भेज दिया गया उसके पश्चात्, मैं निष्क्रिय नहीं थी। वास्तव में, मैं परमेश्वर के वचन को खाने एवं पीने, परमेश्वर से प्रार्थना करने, और सक्रियता से अपने कर्तव्य को निभाने के लिए और भी अधिक समर्पित हो गई। सतह पर, मैं सत्य के अनुसरण में पहले की अपेक्षा अधिक परिश्रमी दिखाई देती थी, किन्तु यदि आप परदे को हटाते और इसका विश्लेषण करते, तो पिछड़ जाने को स्वीकार करने की मेरी योग्यता सिर्फ इसलिए थी क्योंकि मैं ने किसी दिन उछलकर आगे आने की महत्वाकंक्षाओं को आश्रय दिया था। सर्वोत्तम में सर्वोत्तम होने की मेरी ज्वलंत इच्छा ही वह कारण थी कि मैं निष्क्रिय नहीं हुई और इसके बजाए और भी अधिक सक्रियता से सत्य का अनुसरण किया, किन्तु सत्य के प्रति मेरा तथाकथित अनुसरण बस एक भ्रम ही था, और एक अशुद्ध अनुसरण था। मैं अपने स्वयं के स्वार्थी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सत्य के क्षणिक अनुसरण का सह-चुनाव कर रही थी। मेरे उन वर्षों को फिर से याद करते हुए जिन्हें मैं ने परमेश्वर का अनुसरण करते हुए बिताया था, मैं ने यह एहसास किया कि मेरे सारे बलिदानों ने शैतान के ज़हर "कोई दर्द नहीं, तो कोई लाभ नहीं" की कीमत चुकाई थी। इसी प्रकार से इसने मुझे एक अदृश्य जंज़ीर के समान बांधा था और उत्तमता के लिए संघर्ष करने हेतु मुझे बाध्य किया था। जब मेरे पास पहले से ही एक पद था, तो मैं तब भी कहीं अधिक ऊँचे पद का अनुसरण कर रही थी; जब मैं ने अपने पद को खो दिया या आगे बढ़ने में असफल हो गई, तो मैं निष्क्रिय नहीं हुई; ऐसा प्रतीत होता था कि मैं अभी भी सत्य की खोज करने हेतु कीमत को चुकाने के लिए तैयार थी। फिर भी, यह इसलिए नहीं था क्योंकि मैं सत्य को समझती थी और उसके लिए बलिदान करने के लिए तैयार थी। मैं सफल होने की कोशिश में बस बलिदान की उपस्थिति का इस्तेमाल करना चाहती थी। यह तब हुआ जब आखिरकार मैं ने समझा कि "कोई दर्द नहीं, तो कोई लाभ नहीं" का मेरा दृष्टिकोण वास्तव में शैतान का एक ज़हर था जो मेरे रगों में से होकर बह रहा था। मुझे छला गया था; उस ज़हर ने मेरी सारी मानवता सोख लिया था। मैं यथार्थ दृष्टिकोण के किसी एहसास के बिना अहंकारी एवं महत्वाकांक्षी थी। सारी चीज़ें ठीक मेरी नाक के नीचे घटित हुई थीं। मैं ने वास्तव में यह सोचा था कि मेरी महत्वाकांक्षा मेरी आकांक्षा के लिए एक साक्ष्य है। मैं ने सोचा था कि पिछड़ जाने के प्रति अनिच्छा का मेरा अहंकारी स्वभाव मेरी प्रेरणा का एक चिन्ह था। मैं ने सत्य के रूप में शैतान की भ्रान्तियों की उपासना की थी और उन्हें लाल अक्षर (खतरे के निशान) के बजाए सम्मान के एक तमगे के रूप में देखा था। मैं कितनी मूर्ख थी कि मुझे शैतान के द्वारा उस तरह छला गया था, कि मैं अच्छे और बुरे में अन्तर करने में असफल हो गई थी? आखिरकार मैं ने देखा कि मैं कितनी अभागी थी। मैं ने यह भी सीखा कि शैतान कितना घातक एवं घिनौना है। शैतान हमें धोखा देने और भ्रष्ट करने के लिए ऊपर से आकर्षक भ्रान्तियों का इस्तेमाल करता है। वह हमें बहकाकर दूर ले जाता है, और हम उसकी छलपूर्ण युक्तियों के प्रति स्वामी भक्ति में शपथ खाते हैं। यह सब कुछ हमारी जानकारी के बगैर किया जाता है। हम सोचते हैं कि हम सत्य का अनुसरण कर रहे हैं और सत्य के लिए बलिदान कर रहे हैं, किन्तु हम वास्तव में स्वयं को धोखा देते हुए जी रहे हैं। शैतान के ज़हर वास्तव में प्रभावकारी हैं! यदि यह परमेश्वर के अद्भुत प्रकाशन की बात नहीं होती, तो मैं कभी भी उस सत्य को नहीं देख पाती कि मुझे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है, और मैं निश्चित रूप से उसकी छलपूर्ण युक्तियों के आर पार कभी नहीं देख सकती थी। यदि यह परमेश्वर के अद्भुत प्रकाशन की बात नहीं होती, तो मैं शैतान के जूए के नीचे निरन्तर जीवन बिताती रहती, जब तक शैतान अन्ततः मुझे पूरी तरह से खत्म नहीं कर देता।
उस समय, मैं ने परमेश्वर के वचन के बारे में सोचा: "यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवा करने वाले के रूप काम करने वाला बन कर प्रसन्न हो, तथा गुमनामी में कर्मठतापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण के साथ काम करते हो, हमेशा अर्पित करते हो और कभी भी लेते नहीं हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक वफादार संत हो, क्योंकि तुम किसी प्रतिफल की खोज नहीं करते हो और तुम मात्र एक ईमानदार मनुष्य बने रहते हो" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "तीन चेतावनियाँ" से)। परमेश्वर के वचन ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया। परमेश्वर की सृष्टि के एक प्राणी के रूप में, मुझे बिना किसी शर्त के उससे प्रेम करना तथा उसे संतुष्ट करना चाहिए और श्रद्धापूर्वक अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए। यह वह एहसास है जिसे परमेश्वर की सृष्टि के एक प्राणी को धारण करना चाहिए। यह ऐसा अनुसरण है जो परमेश्वर की इच्छा के साथ मेल खाता है। आज के दिन के बाद से, मैं सत्य का अनुसरण करने का भरसक प्रयास करूंगी। मैं शैतान के धोखे को भेदने के लिए और उसके जूए को उतार फेंकने के लिए सत्य पर भरोसा करूंगी। आगे से मैं देह की किसी भी चीज़ का अनुसरण नहीं करूंगी। इसके बजाए, मैं गुमनामी में भी परिश्रम करूंगी, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने कर्तव्य को निभाऊंगी। भले ही मुझे अन्त में कुछ भी न मिले, फिर भी बिना किसी खेद के मैं इच्छापूर्वक आगे बढ़ती रहूंगी, क्योंकि मैं परमेश्वर की महत्वहीन रचनाओं में से बस एक रचना हूँ। सृष्टिकर्ता को संतुष्ट करना ही जीवन में मेरा एकमात्र सच्चा उद्देश्य है।
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-मसीह के न्याय के अनुभव की गवाहियाँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें