16.8.19

68. पवित्र आत्मा के कार्य का पालन करना अति महत्वपूर्ण है!

बहन ज़ाइओवेई शैंगहाई शहर
कुछ समय पहले, हालाँकि मैं हमेशा से कुछ प्रेरणा और लाभ प्राप्त करती थी जब एक बहन जो मेरे साथ भागीदारी करती थी उसने मेरे साथ उस अद्भुत प्रकाशन को साझा किया था जिसे उसने परमेश्वर के वचन को खाते और पीते समय प्राप्त किया था, मुझ में हमेशा से एक ठहरा एहसास भी था कि वह दिखावा कर रही थी। मैं अपने आप में सोचती, "यदि मैं उसे इसी वक्त प्रत्युत्तर दूं, तो क्या मैं उसे बढ़ावा नहीं दे रही होऊँगी? उस अर्थ में, तब क्या मैं उससे कमतर नहीं दिखाई दूंगी?" इसके परिणामस्वरूप, मैं ने वार्तालाप में अपने स्वयं के विचारों को लाने से या किसी भी ऐसी सोच पर टीका-टिप्पणी करने से मना कर दिया जिसे वह साझा करती थी। एक बार, मेरी बहन ने, परमेश्वर के वचन के विशेष अंश से खाने एवं पीने से कुछ अंतर्दृष्टि पाने के बाद, महसूस किया कि हमारी स्थिति में कुछ तो गलत था और उसने मुझ से पूछा कि क्या मैं परमेश्वर के वचन के उस अंश पर उसके साथ बात करने के लिए तैयार होऊँगी। जैसे ही उसने पूछा, तो नाराज़गी के ये सभी विचार एवं भावनाएं सतह पर तैरने लगीं: "आप बस चाहती हैं कि स्वयं के लिए गवाही दें, कि आपके पास प्रचार के लिए एक श्रोता हो। मुझे आपके साथ क्यों बात करना चाहिए?" यहाँ तक कि मैं उस हद तक भी चली गई कि मैं एक सभा से चुपके से चली गई ताकि मुझे उसे सुनना न पड़े। कुछ समय बाद, मैं ने अपने हृदय में एक भारी बोझ का एहसास किया, मैं जान गई कि मेरी स्थिति के साथ कुछ तो गलत है, किन्तु मैं अपने भीतरी संघर्ष का समाधान करने के लिए कोई अच्छा तरीका सोच न सकी। जो कुछ मैं कर सकती थी वह यह था कि अपने कर्तव्यों में अपने आपको पूरी तरह से लगा दूं, परमेश्वर के वचन को खाऊं और पीऊं, और इन नकारात्मक भावनाओं से अपना ध्यान हटाने के लिए भजनों को गाऊं। फिर भी, जब कभी मुझे वर्तमान स्थिति का सामना करना पड़ता था, तो वही भ्रष्टता मेरे हृदय में उत्पन्न होती—चीज़ें बद से बदतर हो रही थीं, बेहतर नहीं—और मैं कुछ समझ नहीं पाई कि इसके बारे में क्या करूं।
कुछ दिनों के बाद, वार्तालाप के दौरान मेरा उस बहन के साथ आमना-सामना हो गया। उस बहन ने कहा: हाल ही में आप वार्तालाप के दौरान काफी शांत रहती हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि हाल ही में आपके साथ कुछ हो गया है।" मैं ने उन शब्दों को अपने पेट में एक घूसे के समान महसूस किया, किन्तु किसी की नज़रों में न गिरने के लिए मैं ने इन्कार किया कि कोई समस्या थी। उस समय मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि वह बहन बहुत ही अहंकारी थी: ऐसा प्रतीत हुआ कि उसने मेरी स्वयं की गरिमा का कोई लिहाज न करते हुए कहा था और मुझे यह एहसास हुआ कि वह मुझे नीची दृष्टि से देख रही थी। सभी पुराने भ्रष्ट विचार तेजी से वापस आ गए। जितना अधिक मैं संघर्ष करती, मेरा आत्मा उतना ही अधिक अंधकारमय होता गया; मैं ने परमेश्वर के साथ सम्पर्क खो दिया था। पूरी तरह से असहाय महसूस करते हुए, मैं ने परमेश्वर के आगे घुटने टेके और प्रार्थना की कि वह मुझे मेरी वास्तविक दशा के प्रति प्रकाशित करे। प्रार्थना के मध्य, परमेश्वर का वचन मेरे पास आया: "जो पवित्र आत्मा के कार्य को एक खेल की तरह देखते हैं वे ओछे होते हैं!" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है" से)। उसके बाद, मुझे अचानक ही निम्नलिखित अंश मिला: "पवित्र आत्मा न केवल उन खास मनुष्यों में कार्य करता है जो परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए जाते हैं, बल्कि कलीसिया में कहीं ज़्यादा कार्य करता है। वह किसी में भी कार्य कर रहा हो सकता है। वह वर्तमान में तुम में कार्य कर सकता है, और जब तुम उसका अनुभव कर लो, तो उसके बाद वह किसी और में कार्य कर सकता है। अनुसरण करने में शीघ्रता करो; जितना अधिक घनिष्ठता से तुम वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करते हो, उतना ही अधिक तुम्हारा जीवन परिपक्व हो सकता है और उन्नति कर सकता है। इस बात की परवाह किए बिना कि वह किस ढंग का मनुष्य है, जब तक उसमें पवित्र आत्मा कार्य करता है, अनुसरण करना सुनिश्चित करो। अपने स्वयं के अनुभवों के माध्यम से उसके अनुभवों को लो, और तुम्हें और भी अधिक उच्चतर चीजें प्राप्त होंगी। ऐसा करने से तुम तेजी से प्रगति करोगे। यह मनुष्य के लिए सिद्धता का मार्ग है और ऐसा मार्ग है जिसके माध्यम से जीवन बढ़ता है। सिद्ध बनाए जाने के मार्ग तक पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति तुम्हारी आज्ञाकारिता के माध्यम से पहुँचा जाता है। तुम नहीं जानते हो कि तुम्हें सिद्ध बनाने के लिए परमेश्वर किस प्रकार के व्यक्ति के जरिए कार्य करेगा, न ही यह जानते हो कि किस व्यक्ति, घटना, चीज़ के जरिए वह तुम्हें सम्पत्ति में प्रवेश करने और तुम्हें कुछ परिज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाएगा। यदि तुम इस सही पथ पर चलने में सक्षम हो, तो यह दिखाता है कि परमेश्वर के द्वारा तुम्हें सिद्ध बनाए जाने की बड़ी आशा है। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते हो, तो यह दिखाता है कि तुम्हारा भविष्य सूना और प्रकाश से रहित है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" से)। इस अंश को पढ़कर, मैं ने चौंकते हुए एहसास किया: इस पूरे समय में मैं पवित्र आत्मा के कार्य का प्रतिरोध करती रही हूँ! इन दिनों में, मेरी बहन ने परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने से अकसर अद्भुत प्रकाशन प्राप्त किया है, उस में अपने कर्तव्य के लिए और दूसरों के जीवन के लिए कुछ बोझ है, और वह दूसरों का समर्थन एवं सहायता करके खुश है; स्पष्ट रूप से पवित्र आत्मा उसके माध्यम से कार्य कर रहा है। मुझे पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति आज्ञाकारी होना चाहिए और उसकी सहायता को स्वीकार करना चाहिए, किन्तु इसके बजाए मैं ने उस बहन को दिखावा करनेवाली समझा, यह सोचते हुए कि वह केवल यह साबित करना चाहती थी कि वह किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा कितनी बेहतर थी। इसके परिणामस्वरूप, मैं ने उसकी अन्तःदृष्टियों को अस्वीकार किया, और उसके साथ बातचीत करने से मना किया। परमेश्वर मुझे मेरी दशा को दिखाने और मेरी सहायता करने के लिए उस बहन के माध्यम से कार्य कर रहा था और जो कुछ मैं ने किया था वह नाराज़गी एवं पूर्वधारणा को प्रकट करना था और उसे अपने शत्रु के रूप में लेना था। सतह पर, ऐसा दिखाई देता था मानो यह बस मेरे और इस बहन के बीच का एक झगड़ा था, किन्तु वास्तविकता में मैं अपने आपको परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर रही थी! क्या मैं पवित्र आत्मा के कार्य का तिरस्कार एवं प्रतिरोध नहीं कर रही थी? कितनी धूर्त, भद्दी, अहंकारी एवं जिद्दी रही हूँ मैं! अपनी लाज रखने और अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए, मैं ने उसकी सहायता को पाने हेतु अपने आपको अलग रखने से इन्कार किया और यहाँ तक कि उसकी बातचीत को ठुकराया, टाला और उस पर दोष लगाया! तर्क एवं मानवता का थोड़ा भी अंश नहीं था! इस बिन्दु पर, मैं ने एहसास किया कि मैं वाकई में परमेश्वर की आज्ञाकारिता एवं भय में जीवन नहीं बिता रही थी, मैं सत्य से प्रेम नहीं करती थी और मैं अपनी बहन में पवित्र आत्मा के बहुमूल्य कार्य के प्रति नासमझ थी। इसके बदले, मैं ने अपनी स्वयं की व्यक्तिगत हैसियत एवं व्यर्थता को किसी भी अन्य चीज़ के आगे रखा। मैं किसी की नज़रों में गिरने की अपेक्षा पवित्र आत्मा के काम को त्यागना अधिक पसन्द करत। किस प्रकार मेरे कार्य उन धार्मिक अगुवों से कुछ अलग थे, जो, अपनी प्रसिद्धि एवं हैसियत को सुरक्षित रखने के लिए, यह जानते हुए भी परमेश्वर का प्रतिरोध एवं उसकी निन्दा करते थे कि यही सत्य का मार्ग है? क्या मैं बस एक और तुच्छ इंसान नहीं थी जो, ठीक वैसे ही जैसा परमेश्वर ने कहा था, पवित्र आत्मा के कार्य को एक खेल के रूप में देखता है? पीछे मुड़कर देखने पर, मैं महसूस करती हूँ कि पवित्र आत्मा सिर्फ उस बहन में ही कार्य नहीं कर रहा था, वह मुझे सुधारने की, मेरी आँखों को खोलने की और उस प्रक्रिया से कुछ प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था। मैं ने बदले में क्या किया? मैं अहंकारी एवं घमण्डी थी और हर पल परमेश्वर के अनुग्रह को ठुकराती थी। मैं ने सिद्ध होने के लिए, प्रकाशित होने के लिए तथा सच्चाईयों में और भी अधिक अन्तःदृष्टियों को पाने के लिए कितने अवसरों को खो दिया! मैं कितनी मूर्ख, और कितनी बेवकूफ थी!
उस घड़ी, वह सब जो मैं ने किया है उसके लिए मैं ने कहीं अधिक विद्वेष और दोष भावना का एहसास किया, अतः मैं ने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैं अंधी, मूर्ख, एवं अहंकारी रही हूँ, और किसी भी रीति से उस कार्य के लायक नहीं हूँ जिसे तू ने मुझ में सम्पन्न किया है या तेरे द्वारा सिद्ध किए जाने के काबिल नहीं हूँ। परमेश्वर, धन्यवाद तेरे मार्गदर्शन एवं अद्भुत प्रकाशन के लिए, मुझे मेरी स्वयं की अज्ञानता एवं मूर्खता को दिखाने के लिए। अब से, मैं तुझ से वादा करती हूँ, मेरा कोई भी भाई एवं बहन धार्मिक समागम कर रहे हों, जब तक वे परमेश्वर के वचन या परमेश्वर की इच्छा के मेल में बोल रहे हों, मैं अनुसरण, पालन एवं स्वीकार करूंगी, क्योंकि यह मेरे जीवन में उन्नति की ओर जानेवाला पथ है और तेरी आशीष का चिन्ह है। मैं किसी एक व्यक्ति के प्रति आज्ञाकारी नहीं हूँ, किन्तु इसके बजाए उन सभी सकारात्मक चीज़ों के प्रति आज्ञाकारी हूँ जो तेरी ओर से आती हैं। यह तेरी सिद्धता को स्वीकार करने का एक अवसर है। अगर मैं तेरे विरुद्ध फिर से अनाज्ञाकारिता एवं विद्रोह करूँ, तो मैं याचना करती हूँ कि तू मुझे दण्ड दे।"
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-मसीह के न्याय के अनुभव की गवाहियाँ

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