परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यह केवल आज है, जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच में आकर अपने वचनों को कहता हूँ, कि मनुष्यों को मेरे बारे में अल्पज्ञान है, अपने विचारों में "मेरे" लिए स्थान को हटा रहे हैं, उसके बदले अपनी चेतना में व्यवहारिक परमेश्वर के लिए स्थान बना रहे हैं। मनुष्य की धारणाएँ हैं और उत्सुकता से भरा है; परमेश्वर को कौन नहीं देखना चाहेगा? कौन परमेश्वर का सामना नहीं करना चाहेगा? फिर भी केवल एक चीज जो मनुष्य के हृदय में एक निश्चित स्थान धारण किए हुए है वह है परमेश्वर जिसे मनुष्य महसूस करता है कि अज्ञात और अमूर्त है। यदि मैंने उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं बताया होता तो किसने इसे महसूस किया होता? किसने सच में विश्वास किया होता कि मैं वास्तव में विद्यमान हूँ? निश्चित रूप से जरा सी भी शंका के बिना? मनुष्य के हृदय में "मुझ" और वास्तविकता में "मुझ" के बीच एक बहुत ही विशाल अंतर है, और उनके बीच तुलना करने में कोई भी सक्षम नहीं है। यदि मैं देहधारी नहीं होता, तो मनुष्य ने मुझे कभी भी नहीं जाना होता, और यहाँ तक कि उसने मुझे जान भी लिया होता, तो क्या इस प्रकार का ज्ञान अभी भी एक धारणा नहीं होता? …
यह केवल आज है, जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच में आकर अपने वचनों को कहता हूँ, कि मनुष्यों को मेरे बारे में अल्पज्ञान है, अपने विचारों में "मेरे" लिए स्थान को हटा रहे हैं, उसके बदले अपनी चेतना में व्यवहारिक परमेश्वर के लिए स्थान बना रहे हैं। मनुष्य की धारणाएँ हैं और उत्सुकता से भरा है; परमेश्वर को कौन नहीं देखना चाहेगा? कौन परमेश्वर का सामना नहीं करना चाहेगा? फिर भी केवल एक चीज जो मनुष्य के हृदय में एक निश्चित स्थान धारण किए हुए है वह है परमेश्वर जिसे मनुष्य महसूस करता है कि अज्ञात और अमूर्त है। यदि मैंने उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं बताया होता तो किसने इसे महसूस किया होता? किसने सच में विश्वास किया होता कि मैं वास्तव में विद्यमान हूँ? निश्चित रूप से जरा सी भी शंका के बिना? मनुष्य के हृदय में "मुझ" और वास्तविकता में "मुझ" के बीच एक बहुत ही विशाल अंतर है, और उनके बीच तुलना करने में कोई भी सक्षम नहीं है। यदि मैं देहधारी नहीं होता, तो मनुष्य ने मुझे कभी भी नहीं जाना होता, और यहाँ तक कि उसने मुझे जान भी लिया होता, तो क्या इस प्रकार का ज्ञान अभी भी एक धारणा नहीं होता? …
… क्योंकि मनुष्य को शैतान के द्वारा प्रलोभित और भ्रष्ट किया गया है, क्योंकि उस पर धारणाओं की सोच द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है, इसलिए सम्पूर्ण मानवजाति को जीतने, मनुष्य की सम्पूर्ण धारणाओं को उजागर करने, और मनुष्य की सोच की धज्जियाँ उड़ाने के उद्देश्य से मैं देह बन गया हूँ। परिणामरूवरूप, मनुष्य मेरे सामने अब और आडंबर नहीं करता है, और अपनी स्वयं की धारणाओं का उपयोग करके मेरी सेवा अब और नहीं करता है, और इस प्रकार मनुष्य की धारणाओं में "मैं" पूरी तरह से तितर-बितर हो जाता है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिये परमेश्वर के कथन "वचन देह में प्रकट होता है" के "ग्यारहवाँ कथन" से लिया गया
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ, I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए से।
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ, I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए से।
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