5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?(4)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन
क्योंकि सभी घटनाओं के बावजूद मनुष्य मनुष्य है, और वह एक इंसान के दृष्टिकोण और ऊँचाई से ही सभी चीज़ों को देख सकता है। मगर देहधारी परमेश्वर भ्रष्ट व्यक्ति से पूर्णत: अलग है। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परमेश्वर का देहधारी शरीर कितना सामान्य, कितना साधारण, कितना दीन है, या लोग उसे कितनी नीची दृष्टि से देखते हैं, मानवजाति के प्रति उसके विचार और उसकी मनोवृत्तियाँ ऐसी चीज़ें है जिन्हें कोई भी मनुष्य धारण नहीं कर सकता है, और ना ही उसका अनुकरण कर सकता है। वह हमेशा ईश्वरीय दृष्टिकोण, और सृष्टिकर्ता के रूप में अपने पद की ऊँचाई से मानव जाति का अवलोकन करता रहेगा।वह हमेशा परमेश्वर के सार और मनःस्थिति से मानव जाति को देखता रहेगा। वह एक औसतइंसान की ऊँचाई, और एक भ्रष्ट इंसान के दृष्टिकोण से मानव जाति को बिल्कुल नहीं देख सकता है। जब लोग मानव जाति को देखते हैं, तो वे मानवीय दृष्टि से देखते हैं, और वे मानवीय ज्ञान और मानवीय नियमों और सिद्धांतों जैसी चीज़ों को एक पैमाने की तरह प्रयोग करते हैं। यह उस दायरे के भीतर है जिसे लोग अपनी आँखों से देख सकते हैं; यह उस दायरे के भीतर है जिसे भ्रष्ट लोग प्राप्त कर सकते हैं। जब परमेश्वर मानव जाति को देखता है, वह ईश्वरीय दर्शन के साथ देखता है, और अपने सार और जो उसके पास है तथा जो वह है उसे नाप के रूप में लेता है। इस दायरे में वे चीज़ें शामिल हैं जिन्हें लोग नहीं देख सकते हैं, और यहीं पर देहधारी परमेश्वर और दूषित मनुष्य बिल्कुल अलग हैं। इस अन्तर को मनुष्यों और परमेश्वर के भिन्न भिन्न सार तत्वों के द्वारा निर्धारित किया जाता है, और ये भिन्न भिन्न सार ही हैं जो उन की पहचानों और पदस्थितियों को निर्धारित करते हैं साथ ही साथ उस दृष्टिकोण और ऊँचाई को भी जिस से वे चीज़ों को देखते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से
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