3. देह-धारी परमेश्वर के कार्य और आत्मा के कार्य के बीच क्या अंतर है?(6)
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जब परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था, तब जो कुछ वह कहता था लोग उसे काफी हद तक नहीं समझते थे क्योंकि वह पूर्ण दिव्यता से आया था। वह दृष्टिकोण और सन्दर्भ जिन के बारे में वह कहता था वह मानव जाति के लिए अदृश्य और अगम्य था; वह आध्यात्मिक आयाम से प्रकट होता था जिसे लोग समझ नहीं सकते थे। ऐसे लोग जिन्होंने देह में जीवन बिताया था, वे आध्यात्मिक आयाम से होकर गुज़र नहीं सकते थे।परन्तु परमेश्वर के देहधारण के बाद, उसने मनुष्यों से मानवीय दृष्टिकोण से बात की, और वह आध्यात्मिक आयाम के दायरे से बाहर आया और उस से आगे बढ़ गया था। वह अपने दिव्य स्वभाव, इच्छा, और प्रवृत्ति को प्रकट कर सकता था, उन चीज़ों के द्वारा जिसकी कल्पना मनुष्य कर सकते थे और उन चीज़ों के द्वारा जिन्हें उन्होंने अपने जीवन में देखा और सामना किया था, और ऐसी पद्धतियों के प्रयोग के द्वारा जिन्हें मनुष्य स्वीकार कर सकते थे, एक ऐसी भाषा में जिसे वे समझ सकते थे, और ऐसे ज्ञान के द्वारा जिस का वे आभास कर सकते थे, ताकि मानवजाति को उस मात्रा तक जितना वे सह सकते थे परमेश्वर को समझने और जानने, और उनकी क्षमता के दायरे के भीतर उसके इरादे और उसके अपेक्षित ऊँचे स्तर को बूझने की अनुमति दे सके। यह मानवता मे परमेश्वर के कार्य की पद्धति और सिद्धांत थे। यद्यपि देह में होकर कार्य करने से परमेश्वर के तरीकों और सिद्धांतोंको मुख्यतः उसकी मानवता के द्वारा या उस में होकर हासिल किया गया था, फिर भी इस ने सचमुच में ऐसे परिणामों को हासिल किया जिन्हें सीधे ईश्वरीयता में होकर कार्य करने से हासिल नहीं किया जा सकता था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ
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