परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को सीधे तौर पर पवित्रात्मा के साधनों के माध्यम से या आत्मा के रूप में बचाया नहीं जाता है, क्योंकि उसके आत्मा को मनुष्य के द्वारा न तो देखा जा सकता है और न ही स्पर्श किया जा सकता है, और मनुष्य के द्वारा उस तक पहुँचा नहीं जा सकता है।
यदि उसने आत्मा के तरीके से सीधे तौर पर मनुष्य को बचाने का प्रयास किया होता, तो मनुष्य उसके उद्धार को प्राप्त करने में असमर्थ होता। और यदि परमेश्वर सृजित मनुष्य का बाहरी रूप धारण नहीं करता, तो वे इस उद्धार को पाने में असमर्थ होते। क्योंकि मनुष्य किसी भी तरीके से उस तक नहीं पहुँच सकता है, उसी प्रकार जैसे कोई भी मनुष्य यहोवा के बादल के पास नहीं जा सकता था। केवल सृष्टि का एक मनुष्य बनने के द्वारा ही, अर्थात्, अपने वचन को देह में रखकर ही वह मनुष्य बनेगा, वह व्यक्तिगत रूप से वचन के कार्य को उन सभी मनुष्यों में कर सकता है जो उसका अनुसरण करते हैं। केवल तभी मनुष्य स्वयं उसके वचन को सुन सकता है, उसके वचन को देख सकता है, और उसके वचन को ग्रहण कर सकता है, तब इसके माध्यम से पूरी तरह से बचाया जा सकता है। यदि परमेश्वर देह नहीं बना होता, तो किसी भी शरीरी मनुष्य ऐसे बड़े उद्धार को प्राप्त नहीं किया होता, और न ही कोई एक भी मनुष्य बचाया गया होता। यदि परमेश्वर का आत्मा ने सीधे तौर पर मनुष्य के बीच काम किया होता, तो मनुष्य को मार दिया गया होता या शैतान के द्वारा पूरी तरह से बंदी बनाकर ले जाया गया होता क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के साथ सम्बद्ध होने में असमर्थ है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (4)" से
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