18.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(6)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(6)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है


         परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण सारी मानवजाति के वास्ते है, और समूची मानवजाति की ओर निर्देशित है। यद्यपि यह देह में उसका कार्य है, फिर भी इसे अब भी सारी मानवजाति की ओर निर्देशित किया गया है; वह सारी मानवजाति का परमेश्वर है, वह सभी सृजे गए और न सृजे गए प्राणियों का परमेश्वर है। यद्यपि देह में उसका कार्य एक सीमित दायरे के भीतर होता है, और इस कार्य का विषय भी सीमित होता है, फिर भी हर बार जब वह अपना कार्य करने के लिए देह धारण करता है तो वह अपने कार्य का एक विषय चुनता है जो अत्यंत प्रतिनिधिक है; वह सामान्य एवं मामूली लोगों के एक समूह को नहीं चुनता है कि उन पर कार्य करे, किन्तु इसके बजाए अपने कार्य के विषय के रूप में लोगों के ऐसे समूह को चुनता है जो देह में उसके कार्य के प्रतिनिधि होने में सक्षम हैं।

17.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(5)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(5)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

           देह के उसके कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जिसे कार्य के सम्बन्ध में कहा गया है, और वह परमेश्वर जो अंततः कार्य का समापन करता है वह देहधारी परमेश्वर है, और आत्मा नहीं है। कुछ लोग विश्वास करते हैं कि शायद परमेश्वर किसी समय पृथ्वी पर आए और लोगों को दिखाई दे, जिसके बाद वह समस्त मानवजाति का न्याय करेगा, किसी को छोड़े बिना उन्हें एक एक करके जांचेगा। ऐसे लोग जो इस रीति के सोचते हैं वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते हैं।

16.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(4)

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(4)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

          मनुष्य को शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, और वह परमेश्वर के सभी जीवधारियों में सबसे ऊपर है, अतः मनुष्य को परमेश्वर के उद्धार की आवश्यकता है। परमेश्वर के उद्धार का विषय मनुष्य है, न कि शैतान, और जिसे बचाया जाना चाहिए वह मनुष्य की देह है, एवं मनुष्य का प्राण है, और शैतान नहीं है। शैतान परमेश्वर के सम्पूर्ण विनाश का विषय है, मनुष्य परमेश्वर के उद्धार का विषय है, और मनुष्य के शरीर को शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, अतः जिसे पहले बचाना है वह मनुष्य का शरीर ही होगा। मनुष्य की देह को बहुत ज़्यादा भ्रष्ट किया जा चुका है, और यह कुछ ऐसा बन गया है जो परमेश्वर का विरोध करता है, जो यहाँ तक कि खुले तौर पर परमेश्वर का विरोध करता है और उसके अस्तित्व को भी नकारता है।

15.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(3)
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

         क्योंकि वे सभी जो देह में जीवन बिताते हैं, उन्हें अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए अनुसरण हेतु लक्ष्यों की आवश्यकता होती है, और परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वास्तविक कार्यों एवं वास्तविक चेहरे को को देखने की आवश्यकता होती है। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी शरीर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है, और दोनों को सिर्फ साधारण एवं वास्तविक देह के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। इसी लिए देहधारण ज़रूरी है, और इसी लिए समस्त भ्रष्ट मानवजाति को इसकी आवश्यकता होती है।

14.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(2)

(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

मनुष्य परमेश्वर में अपने निश्चिन्त विश्वास के द्वारा परेशान नहीं होता है, और जैसा उसे भाता है परमेश्वर में विश्वास रखता है। यह मनुष्य का एक "अधिकार एवं आज़ादी" है, जिसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, क्योंकि मनुष्य अपने स्वयं के परमेश्वर में विश्वास करता है तथा किसी और के परमेश्वर पर नहीं; यह उसकी अपनी निजी सम्पत्ति है, और लगभग हर कोई इस तरह की निजी सम्पत्ति रखता है। मनुष्य इस सम्पत्ति को एक बहुमूल्य ख़ज़ाने के रूप में मानता है, किन्तु परमेश्वर के लिए इससे अधिक निम्न या निकम्मी चीज़ और कोई नहीं है, क्योंकि मनुष्य की इस निजी सम्पत्ति की तुलना में परमेश्वर के विरोध का इससे और अधिक स्पष्ट संकेत नहीं है।

13.11.18

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?(1)
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)
भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है
परमेश्वर ने देहधारण किया क्योंकि शैतान का आत्मा, या कोई अभौतिक चीज़ उसके कार्य का विषय नहीं है, परन्तु मनुष्य है, जो शरीर से बना है और जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है। निश्चित रूप से चूँकि मनुष्य की देह को भ्रष्ट किया गया है इसलिए परमेश्वर ने हाड़-मांस के मनुष्य को अपने कार्य का विषय बनाया है; इसके अतिरिक्त, क्योंकि मनुष्य भ्रष्टता का विषय है, उसने मनुष्य को अपने उद्धार के कार्य के समस्त चरणों के दौरान अपने कार्य का एकमात्र विषय बनाया है। मनुष्य एक नश्वर प्राणी है, और वह हाड़-मांस एवं लहू से बना हुआ है, और एकमात्र परमेश्वर ही है जो मनुष्य को बचा सकता है।

12.11.18

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?

5. देह-धारी परमेश्वर और जो परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं उन लोगों के बीच सारभूत अंतर क्या है?(9)

       परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


   देह में रहने वाला कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में समर्थ नहीं है, जब तक कि वह पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग किया गया कोई व्यक्ति न हो। हालाँकि, यहाँ तक कि इस तरह के व्यक्ति के लिए भी, उसके स्वभाव को और जिस जीवन को वह व्यतीत करता है उसे पूर्णतः परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करना नहीं कहा जा सकता है; कोई केवल यही कह सकता है कि वह जो जीवन व्यतीत करता है वह पवित्र आत्मा के द्वारा निर्देशित होता है। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...