18.1.19

3. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बीच सभी का पारस्परिक संबंध।(4)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

   कार्य का अंतिम चरण अकेला नहीं होता है, बल्कि यह उस पूर्ण का हिस्सा है जो पिछले दो चरणों के साथ मिलकर बनता है, कहने का अर्थ है कि कार्य के तीनों चरणों में से केवल एक को करके उद्धार के समस्त कार्य को पूर्ण करना असम्भव है। भले ही कार्य का अंतिम चरण मनुष्य को पूरी तरह से बचाने में समर्थ है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि केवल इसी एक चरण को इसी के दम पर करना आवश्यक है और यह कि कार्य के पिछले दो चरण मनुष्यों को शैतान के प्रभाव से बचाने के लिए आवश्यक नहीं हैं। इन तीन चरणों में से किसी भी एक चरण को ही एकमात्र दर्शन के रूप में नहीं ठहराया जा सकता है जिसे समस्त मानवजाति के द्वारा अवश्य जानना चाहिए, क्योंकि उद्धार के कार्य की सम्पूर्णता कार्य के तीन चरण है न कि उनमें से कोई एक चरण। जब तक उद्धार का कार्य पूर्ण नहीं होगा तब तक परमेश्वर का प्रबंधन का कार्य पूरी तरह से समाप्त होने में असमर्थ होगा। परमेश्वर का अस्तित्व, स्वभाव और बुद्धि उद्धार के कार्य की सम्पूर्णता में व्यक्त होते हैं, मनुष्य पर एकदम आरम्भ में प्रकट नहीं होते हैं, परन्तु उद्धार के कार्य में धीरे-धीरे व्यक्त किए गए हैं। उद्धार के कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर के स्वभाव के हिस्से को और उसके अस्तित्व के हिस्से को व्यक्त करता है; कार्य का हर चरण प्रत्यक्षतः और पूर्णतः परमेश्वर के अस्तित्व की संपूर्णता को व्यक्त नहीं कर सकता है। वैसे तो, उद्धार का कार्य केवल तभी पूरी तरह से सम्पन्न हो सकता है जब कार्य के ये तीनों चरण पूरे हो जाते हैं, और इसलिए परमेश्वर की सम्पूर्णता का मनुष्य का ज्ञान परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों से अवियोज्य है। कार्य के एक चरण से मनुष्य जो प्राप्त करता है वह सिर्फ़ परमेश्वर का स्वभाव है जो उसके कार्य के एक ही भाग में व्यक्त होता है। यह उस स्वभाव और अस्तित्व का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है जो चरणों से पहले या बाद में व्यक्त होता है। यह इसलिए है क्योंकि मानवजाति को बचाने का कार्य सीधे एक ही अवधि के दौरान या एक ही स्थान पर समाप्त नहीं किया जा सकता है, परन्तु भिन्न-भिन्न समयों और स्थानों पर मनुष्य के विकास के स्तरों के अनुसार यह धीरे-धीरे गहरा होता जाता है। यह वह कार्य है जो चरणों में किया जाता है, और एक ही चरण में पूरा नहीं होता है। और इसलिए, परमेश्वर की सम्पूर्ण बुद्धि एक अकेले चरण के बजाय तीन चरणों में सघन रूप लेती होती है। उसका सम्पूर्ण अस्तित्व और सम्पूर्ण बुद्धि इन तीन चरणों में व्यक्त होते हैं, और प्रत्येक चरण में उसके अस्तित्व का समावेश है और उसके कार्य की बुद्धि का अभिलेख है। … कार्य के तीनों चरणों में से प्रत्येक चरण पूर्ववर्ती चरण की बुनियाद पर पूरा किया जाता है; इसे स्वतंत्र रूप से, उद्धार के कार्य से पृथक नहीं किया जाता है। यद्यपि युग और किए गए कार्य के प्रकार में बहुत बड़े अंतर हैं, इसके मूल में अभी भी मानवजाति का उद्धार ही है, और उद्धार के कार्य का प्रत्येक चरण पिछले ज्यादा गहरा होता है।

"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है" से
     Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह  के लिए गवाहियाँ,  II. मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में सच्चाई के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...