(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)
देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं
यदि अंत के दिनों में इस चरण के पूरक के बिना केवल यीशु का कार्य किया गया होता, तो मनुष्य ने हमेशा के लिए यह अवधारणा बना ली होती कि केवल यीशु ही परमेश्वर का पुत्र है, अर्थात्, परमेश्वर का सिर्फ एक ही पुत्र है, और यह कि उसके बाद कोई भी जो किसी दूसरे नाम से आता है वह परमेश्वर का एकमात्र पुत्र नहीं होगा, परमेश्वर स्वयं तो बिल्कुल भी नहीं होगा। मनुष्य की अवधारणा यह है कि वह जो एक पापबलि के रूप में सेवा करता है या जो परमेश्वर के लिए सामर्थ्य को ग्रहण करता है और समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाता है, वही परमेश्वर का एकमात्र पुत्र है। कुछ ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि जब तक आने वाला कोई पुरुष है, उसे ही परमेश्वर का एकमात्र पुत्र और परमेश्वर का प्रतिनिधि समझा जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं यीशु यहोवा का पुत्र है, उसका एकमात्र पुत्र। क्या यह मनुष्य की एक गंभीर अवधारणा नहीं है? यदि कार्य का यह चरण अंत के युग में न किया गया होता, तो जब परमेश्वर की बात आती तो समस्त मानवजाति एक परछाई में ढक गई होती। यदि ऐसा होता, तो मनुष्य अपने बारे में एक स्त्री की तुलना में एक उच्च हैसियत वाला होना सोचता, और स्त्रियाँ कभी भी अपना सिर ऊँचा उठाने में सक्षम नहीं होतीं। ऐसे समय में, किसी भी स्त्री ने उद्धार प्राप्त न किया होता। लोग हमेशा यही माना करते हैं कि परमेश्वर एक पुरुष है, और वह हमेशा स्त्री से घृणा करता है और स्त्री को उद्धार प्रदान नहीं करेगा। यदि ऐसा होता, तो क्या यह सत्य नहीं है कि सभी स्त्रियों को जो यहोवा के द्वारा बनाई गई हैं और भ्रष्ट भी हैं कभी भी बचाए जाने का अवसर नहीं मिला होता? तो फिर क्या यहोवा के लिए स्त्री को बनाना, अर्थात्, हव्वा का बनाया जाना, व्यर्थ नहीं होता? और क्या स्त्री अनंतकाल के लिए नष्ट नहीं हो जाती? इसलिए, अंत के दिनों में कार्य का यह चरण समस्त मानवजाति को बचाने के लिए है, सिर्फ स्त्री को नहीं बल्कि समस्त मानवजाति को बचाने के लिए। यदि कोई अन्यथा सोचता है, तो फिर वह सबसे अधिक मूर्ख है!
"वचन देह में प्रकट होता है" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,अंतिम दिनों के मसीह के लिए गवाहियाँ, I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए से।
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