(3) राज्य के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर न्याय और ताड़ना का कार्य करता है ताकि मनुष्य उसे जाने, और उसकी गवाही को जाने। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव पर परमेश्वर के न्याय के बिना, मनुष्य परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को नहीं जानेगा जो कोई भी अपराध की अनुमति नहीं देता है, और परमेश्वर के बारे में अपनी पुरानी जानकारी को नई जानकारी में बदल नहीं सकता है।
परमेश्वर की गवाही के लिए, और परमेश्वर के प्रबंधन की ख़ातिर, परमेश्वर अपनी सम्पूर्णता को सार्वजनिक बनाता है, इस प्रकार से मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान हासिल करने, अपने स्वभाव को बदलने, और परमेश्वर के सार्वजनिक प्रकटन के माध्यम से परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम बनाता है। मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन परमेश्वर के विभिन्न कार्यों के द्वारा प्राप्त होता है; मनुष्य के स्वभाव में इस प्रकार के परिवर्तन के बिना, मनुष्य परमेश्वर की गवाही देने में असमर्थ होगा, और परमेश्वर के हृदय के अनुसार नहीं बन सकता है। मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन दर्शाता है कि मनुष्य ने स्वयं को शैतान के बंधनों से मुक्त करा लिया है, अंधकार के प्रभाव से मुक्त कर लिया है और परमेश्वर के कार्य के लिए वास्तव में एक मॉडल और नमूना बन गया है, सचमुच परमेश्वर के लिए गवाह बन गया है और परमेश्वर के हृदय के अनुसार व्यक्ति बन गया है। आज, देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर अपना कार्य करने के लिए आया है, और वह चाहता है कि मनुष्य उसका ज्ञान रखे, आज्ञापालन करे, उसकी गवाही दे - उसके व्यावहारिक और सामान्य कार्य को जाने, उसके सम्पूर्ण वचन और कार्य का पालन करे जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होते हैं और मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के सभी कार्य, और उऩ सभी कार्यों की गवाही दे जो परमेश्वर मनुष्य को जीतने के लिए करता है। जो परमेश्वर के लिए गवाही देते हैं उनके पास परमेश्वर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए; केवल इस प्रकार की ही गवाही यथार्थ और वास्तविक होती है, और केवल इस प्रकार की गवाही ही शैतान को शर्मसार कर सकती है। परमेश्वर उन्हें इस्तेमाल करता है जो उसके न्याय और ताड़ना, व्यवहार और कांट-छांट से गुजर कर उसे जानने आए हैं ताकि परमेश्वर की गवाही दे सकें। वह उनका इस्तेमाल करता है जो शैतान द्वारा भ्रष्ट बना दिए गए हैं ताकि वे पमेश्वर की गवाही दे सकें, और उन्हें भी इस्तेमाल करता है जिनके स्वभाव बदल चुके होते हैं, और जिन्होंने उसकी आशीषें प्राप्त कर ली हों, ताकि उसकी गवाही दे सकें। उसे मनुष्यों की इसलिए जरूरत नहीं है कि वे केवल शब्दों से उसकी तारीफ करें, न ही वह शैतान किस्म के लोगों द्वारा अपनी प्रशंसा और गवाही चाहता है, जो परमेश्वर के द्वारा बचाए न गए हों। जो कोई परमेश्वर को जानते हैं केवल वे उसकी गवाही देने के योग्य हैं और जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हों केवल वे ही उसकी गवाही के लिए योग्य हैं, और परमेश्वर मनुष्य को अनुमति नहीं देगा कि वे जानबूझ कर उसके नाम को शर्मसार करें।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल वही जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही दे सकते हैं" से
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