(3) राज्य के युग में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य और महत्व
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन
बुरे को दण्ड और अच्छे को पुरस्कार देने का उसका परम कार्य समस्त मानवजाति को सर्वथा शुद्ध करने के लिए है, ताकि वह पूर्णतः शुद्ध मानवजाति को अनंत विश्राम में ले जाए। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। यह उसके समस्त प्रबंधन कार्य का अंतिम चरण है। यदि परमेश्वर दुष्टों का नाश नहीं करता बल्कि उन्हें बचा रहने देता तो संपूर्ण मानव जाति अभी भी विश्राम में प्रवेश करने योग्य नहीं होती, और परमेश्वर समस्त मानवजाति को एक बेहतर राज्य में नहीं पहुँचा पाता। इस प्रकार वह कार्य पूर्णतः समाप्त नहीं होता। जब वह अपना कार्य समाप्त कर लेगा, तो संपूर्ण मानव जाति पूर्णतः पवित्र हो जाएगी। केवल इस तरह से ही परमेश्वर शांतिपूर्वक विश्राम में रह सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
जो राज्य वह स्थापित करना चाहता है, वह उसका स्वयं का राज्य है। जिस मानवजाति की वह इच्छा करता है वह है जो उसकी आराधना करती है, जो पूर्णतः उसकी आज्ञा का पालन करती है और उसकी महिमा रखती है। यदि वह भ्रष्ट मानवजाति को नहीं बचाता है, तो मनुष्य का सृजन करने का उसका अर्थ व्यर्थ हो जाएगा; मनुष्यों के बीच उसका अब और अधिकार नहीं रहेगा, और पृथ्वी पर उसके राज्य का अस्तित्व अब और नहीं रह पाएगा। यदि वह उन शत्रुओं का नाश नहीं करता है जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, तो वह अपनी संपूर्ण महिमा को प्राप्त करने में असमर्थ होगा, न ही वह पृथ्वी पर अपने राज्य की स्थापना करने में समर्थ होगा। ये परमेश्वर का कार्य पूरा होने के प्रतीक हैं और उसकी महान उपलब्धियों की पूर्णता के प्रतीक हैं: मानवजाति में से उन सबको सर्वथा नष्ट करना जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, और जो पूर्ण किए जा चुके हैं उन्हें विश्राम में लाना।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
मेरे वचनों के पूर्ण होने के बाद, राज्य धीरे-धीरे पृथ्वी पर आकार लेने लगता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्य हो जाता, और इस प्रकार पृथ्वी पर मेरे हृदय में राज्य स्थापित हो जाता है। उस राज्य में, परमेश्वर के सभी लोगों को सामान्य मनुष्य का जीवन वापस मिल जाता है। बर्फीली शीत ऋतु चली गई है, उसका स्थान जल के सोतों के बहरों में संसार ने ले लिया है, जहाँ वे साल भर प्रस्फुटित होते रहते हैं। लोग आगे से मनुष्य के उदास और अभागे संसार का सामना नहीं करते हैं, और न ही वे आगे से मनुष्य के शांत ठण्डे संसार को सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ाई नहीं करते हैं। एक दूसरे के विरूद्ध युद्ध नहीं करते हैं, वहाँ अब कोई नरसंहार नहीं होता है और न ही नरसंहार से लहू बहता है; पूरी ज़मीं प्रसन्नता से भर जाती है, और यह हर जगह मनुष्यों के बीच उत्साह को बढ़ाता है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिये परमेश्वर के कथन "वचन देह में प्रकट होता है" के "बीसवाँ कथन" से लिया गया
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