1.9.18

I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए

               2. देहधारण क्या है? देहधारण का तत्व क्या है?(4)


परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

पृथ्वी पर यीशु ने जो जीवन जीया वह देह में एक सामान्य जीवन था। उसने अपनी देह का सामान्य जीवन जीया। उसके अधिकार-परमेश्वर का कार्य करना और उसके वचन बोलना, या बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना, ऐसे असाधारण कार्य करना-ने ज़्यादातर स्वयं को तब तक प्रकट नहीं किया जब तक उसने अपनी सेवकाई आरम्भ नहीं की।
उसका जीवन उनतीस वर्ष की उम्र से पहले, उसके अपनी सेवकाई आरम्भ करने से पहले, इस बात का पर्याप्त प्रमाण था कि वह एक सामान्य देह वाला था। इस कारण से और क्योंकि उसने अभी तक अपनी सेवकाई को करना आरम्भ नहीं किया था, लोगों को उसमें कुछ भी दिव्य नहीं दिखाई दिया, एक सामान्य मानव, एक सामान्य मनुष्य से अधिक कुछ नहीं दिखाई दिया-जैसे कि शुरू में कुछ लोग उसे यूसुफ के पुत्र के रूप में मानते थे। लोगों ने सोचा कि वह एक सामान्य मनुष्य का पुत्र है, उसके पास यह बताने का कोई तरीका नहीं था कि वह देहधारी परमेश्वर की देह है; यहाँ तक कि जब, अपनी सेवकाई को करने के दौरान, उसने कई अचम्भे किए, तब भी अधिकांश लोगों ने कहा कि वह यूसुफ का पुत्र है, क्योंकि सामान्य मानवता के बाह्य आवरण वाला वह मसीह था। उसकी सामान्य मानवता और कार्य दोनों, यह सिद्ध करते हुए कि परमेश्वर पूरी तरह से देह में आया है, जो कि एक बहुत ही साधारण मनुष्य बन गया है, पहले देहधारण के महत्व को पूर्ण करने के लिए अस्तित्व में थे। यह कि कार्य करने से पहले उसकी सामान्य मानवता थी यह इस बात का प्रमाण था कि वह एक साधारण देह था; और यह कि उसने बाद में भी कार्य किया इस बात ने भी यह प्रमाणित किया कि वह एक साधारण देह थी, क्योंकि उसने सामान्य मानवता, संकेत और चमत्कार किए, बीमार को चंगा किया और दुष्टात्माओं को देह में से निकाला। वह चमत्कारों को कर सका उसका कारण यह था कि उसकी देह ने परमेश्वर के अधिकार को धारण किया था, ऐसी देह थी जिसमें परमेश्वर का आत्मा आच्छादित था। वह परमेश्वर का आत्मा के कारण इस अधिकार से सम्पन्न था, और इसका अर्थ यह नहीं है कि वह देह नहीं था। बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना वह कार्य था जो उसे अपनी सेवकाई में करने की आवश्यकता थी, उसकी मानवता में छिपी दिव्यता की अभिव्यक्ति थी, और इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता कि उसने कौन से संकेत दिखाए या उसने अपने अधिकार को किस प्रकार से प्रदर्शित किया, वह तब भी सामान्य मानवता में रहा और तब भी एक सामान्य देह था। उस स्थिति तक कि वह सलीब पर मरने के बाद पुनर्जीवित हुआ था, तो वह एक सामान्य देह के भीतर रहा। अनुग्रह प्रदान करना, बीमार को चंगा करना, और दुष्टात्माओं को निकालना ये सब उसकी सेवकाई का हिस्सा थे, ऐसे कार्य थे जो उसकी सामान्य देह में किए गए थे। क्रूस पर जाने से पहले, इस बात की परवाह किए बिना कि वह क्या कर रहा है, वह कभी भी अपने सामान्य मानव देह से अलग नहीं हुआ। वह परमेश्वर स्वयं था, परमेश्वर का स्वयं का कार्य कर रहा था, फिर भी क्योंकि वह परमेश्वर की देहधारी देह था, उसने खाना खाया और कपड़े पहने, उसकी सामान्य मानवीय आवश्यकताएँ थी, उसमें सामान्य मानवीय तर्क-शक्ति और सामान्य मानवीय मन था। यह सब इस बात का प्रमाण था कि वह एक सामान्य मनुष्य था, न कि कोई अलौकिक।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" से
Source From:सुसमाचार से सम्बन्धित सत्य,2. देहधारण क्या है? देहधारण का तत्व क्या है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में बाइबिल की भविष्यवाणियाँ

     संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:      "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन...